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Saturday, June 13, 2020

फरिश्ता : 80 साल के जगदीश लाल आहूजा 17 सालों से गरीबों को मुफ्त में खाना खिला रहे हैं

- शशांक गुप्ता

आज जब लोग धर्म के नाम पर दूसरों की जान लेने में तुले हैं उस माहौल में एक इंसान एक के बाद एक अपनी करोड़ों की सात प्रापर्टी  सिर्फ इसलिए बेच दिया क्योंकि कोई भी गरीब भूखे पेट न सोए। उनका मकसद सिर्फ है भूखे को खाना खिलाना।  हम बात कर रहे हैं चंडीगढ़ के लंगर बाबा के नाम से मशहूर 80 साल के जगदीश लाल आहूजा की।  यह फरिश्ता चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल के बाहर मरीजों ,उनके तीमारदारों और गरीबों को पिछले 17 सालों से मुफ्त में खाना खिला रहे हैं।

जगदीश लाल आहूजा का जन्म आज से 80 साल पहले पेशावर में हुआ था, जो आज पाकिस्तान में है। 1947 में देश के बंटवारे के चलते जब वह पटियाला आए उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 12 साल थी। जिंदा रहने के लिए कुछ करना जरूरी था, तो उन्होंने उस छोटी सी उम्र में टॉफियां बेचकर अपना गुजर-बशर किया। 1956 में जब वह चंडीगढ़ आए, तो उनके जेब में सिर्फ कुछ ही रुपये थे। यहां उनका केले का कारोबार खूब फला-फूला और पैसे की कोई कमी न रही। 

जगदीश आहूजा ने जबसे लंगर शुरू किया तबसे उनके सामने कई बार आर्थिक परेशानियां आईं, लेकिन वे कभी पीछे नहीं हटे और अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया , लंगर नहीं रूका। लंगर चलता रहे, इसके लिए उन्होंने मेहनत से जुटाई अपनी संपत्तियों को एक-एक कर बेच दिया।आज इस 'लंगर बाबा' की वजह से रोजाना लगभग 2 हजार लोग अपना पेट भरते हैं। जगदीश ने कसम खाई है कि जबतक वह जिंदा रहेंगे, तबतक उनका लंगर चलता रहेगा और भूखों का पेट भरता रहेगा। वह सिर्फ लंगर ही नहीं चलाते, बल्कि समय-समय पर गरीबों में कंबल, स्वेटर, जूते और मोजे भी बांटते रहते हैं। 

आपकी जिंदगी कड़वाहट से भर गई है ,आप धर्म के नाम पर दूसरों की जान लेने लगे हैं लेकिन इसी दुनिया में कहीं जगदीश लाल आहूजा जैसा इंसान भी  हैं जो बिना किसी का धर्म और जाति पूछे उनका पेट भर रहा है। मानवता के इस नेक बन्दे को मेरा प्रणाम।

देश में कोरोना को लेकर उठने वाले हर सवाल को खारिज करने की इतनी जल्दबाजी क्यों है?

-गिरीश मालवीय

आखिर ऐसा क्यो होता है कि कोविड 19 पर उठते हुए हर प्रश्न को तुंरत खारिज कर दिया जाता है? क्या यह आपको आश्चर्य जनक नही लगता है कि दुनिया मे जैसे ही कोरोना वायरस का प्रसार शुरू हुआ कोविड-19 इंडिया डॉट ओआरजी जैसी वेबसाइट हर देश मे खड़ी हो गयी और ICMR जैसी सरकारी संस्थाओं से उनको डायरेक्ट एक्सेस मिल गया?  हर कोविड हस्पताल की हर जिले की, हर राज्य की यानी क्षेत्रवार इतनी स्पेसिफिक रिपोर्ट दिए जाने का ढांचा कुछ ही दिनों में खड़ा कर दिया गया ओर सेंट्रलाइज्ड स्तर पर इतने शानदार ग्राफिक के साथ यह सभी को उपलब्ध हो गया ? और सब ऐसे ही हो गया ? यकायक?

यानी कि आप देखिए कि किसी बड़े देश मे कोई दुर्घटना हो जाती है तो केजुअल्टी के संबंध में स्थानीय अखबार कुछ बताता है वहाँ के अधिकारी की रिपोर्ट कुछ अलग होती है सरकार कुछ अलग डाटा बताती है लेकिन कोविड 19 के मामले में पूरी दुनिया मे केवल एक सरीखा डाटा चल रहा है वो भी  बिल्कुल स्पेसिफिक ! ठीक है, ऐसा होता है कि थोड़ी घट बढ़ हो जाती है लेकिन अगले दिन सब मिलान हो जाता है। कम से कम भारत जैसे देश मे यह सब होना बहुत ही आश्चर्य जनक है।

मुझे याद है कि जब मैंने पहली कोविड-19 इंडिया डॉट ओआरजी जैसी साइट देखी थी तो मैं बिल्कुल हैरान रह गया था, ऐसा डाटा विश्लेषण ! इतनी डिटेलिंग ! ओर ऐसा प्रिपरेशन! ओर वो भी इतनी जल्दी! यानी कि जब देश मे कुछ सौ मामले ही आए थे मौतें भी बहुत कम थी तब इस लेवल की वेबसाइट का होना मेरे लिए विस्मयकारी घटना थी

ओर सबसे बड़ी बात तो यह कि ऐसा दुनिया के लगभग सभी  कोरोना प्रभावित देशो में एकसाथ ? प्रतिदिन की रिपोर्ट का मिलना रीयल टाइम में ! खासकर सिर्फ उन देशों का ही डेटा जहाँ इंटरनेट की डाटा की अच्छी खासी उपलब्धता हो? कई अफ्रीकन कंट्रीज के तो आज भी डाटा नहीं है

ओर सबसे मजे की बात तो यह कि आप इस पर सवाल खड़े करो तो लोग आपको अफवाह फैलाने वाला ? कांस्पिरेसी थ्योरिस्ट ? जैसे तमगे से नवाज देते हैं !

लगता है कि जैसे कुछ सदियों पहले लोग धर्म से आतंकित थे वैसे ही आज लोग विज्ञान से आतंकित हो गए हैं आधुनिक युग मे धर्म पर सवाल उठाए गए, रीति रिवाजों पर ,मान्यताओं पर भी उठाए गए और अब समय आ गया है कि सवाल विज्ञान पर भी उठाए जाए और विज्ञान उन सवालों का जवाब देने में सक्षम है वो जवाब देगा भी पर आप कम से कम सवाल तो करे !

क्या ऐसा संभव नही है कि पुराने जमाने मे जो लोग धर्म के नाम आपकी हमारी जुबानों को बन्द कर देना चाहते थे वही लोग आज विज्ञान के नाम पर हमें खामोश कर देना चाहते हों, यानी वही ! मानव जीवन के हर पहलू पर नियंत्रण की चाह रखने वाले बेहद ताकतवर लोग!

Friday, June 12, 2020

'सड़क पर हज़ारों की संख्या में निश्चिंतता का घूमना मुझे आजकल सबसे डरावना लगता है'

-कंचन सिंह चौहान

लिफ़्ट के बाहर चिपका कागज़ '3 people only' पता नहीं फट गया या फाड़ दिया गया।  लिफ्ट में लोगों के घुसने की होड़ लगी होती है। कल मैंने दो बार लिफ्ट को जाने दिया कि भरी हुई है। तीसरी बार लिफ्ट में घुसी तो मेरे पीछे चार लोग और घुस गए। मैंने कहा, "सर तीन लोगों का रहना सुरक्षित है। आप में से कोई दो उतर जाएं या मैं ही निकल जाती हूँ"..."आप रहिये मैडम" किसी एक ने कहा लेकिन अपनी जगह से हिला कोई नहीं। मैं लिफ्ट से निकल आई। 

दोबारा वेट करने लगी। इस बार मैं लिफ्ट में घुसने के बाद ही एक्टिव थी। मैं दरवाज़े पर रही और कहा, "सिर्फ़ दो लोग प्लीज़" दो लोग आ गए लिफ्ट चल दी 6ठी मंजिल पर लिफ्ट रुकी। मास्क गले में लटकाए एक सज्जन ने घुसने का प्रयास किया मैंने लिफ्ट के बीच मे हाथ लगाते हुए कहा, "तीन लोग पहले से हैं सर" उसे शायद उम्मीद नहीं थी, उसने अचकचाते हुए कहा, "चार तो alloowd हैं।" "कहाँ लिखा है ?" मैंने पूछा वे चुप हो गए। लिफ्ट बढ़ गयी।

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आज मैं तैयार थी वेट ना करने को और अपनी बात कहने को। लिफ्ट में घुसते ही मैंने कहा, "सिर्फ़ तीन लोग प्लीज़" बाहर खड़े तीन लोगों में दो लोग अंदर आ गए। लिफ्ट चल दी। चौथी फ्लोर पर रुकी। एक सज्जन आने को तैयार थे। मैंने उनसे कहा, "सर पहले से यहाँ तीन लोग हैं" 
उन्होंने मेरी बात को अनसुना किया और लिफ्ट में घुस गए। चौथी फ्लोर पर तो मैं बाहर भी नहीं निकल सकती।

लिफ्ट चल दी। मैंने बस फ्रस्टेशन मिटाने को कहा, "आपको नहीं आना चाहिए था सर।"
"चार लोग allowed हैं मैडम"
"चार नही तीन"
"तीन लोग बाहरी और एक लिफ़्ट मैन"
"कहाँ हुआ ऐसा स्पेसिफिकेशन ? वैसे भी लिफ्टमैन तो मुझे आज तक मिला नहीं लिफ्ट में।"

"सभी जा रहे हैं मैडम इतना पैनिक होने की ज़रूरत नहीं"

"सभी तो गले भी मिल रहे हैं। हाथ भी मिला रहे हैं। गोलगप्पे खा रहे, चाय पी रहे लेकिन ये सही तो नहीं है ना। ये तो हम सबकी सुरक्षा के लिए है। आपको नहीं पता कि मैं ही कौन सा वायरस ले कर घूम रही होऊँ।"लिफ्ट में खड़े दूसरे सज्जन ने कहा, "मैडम कह तो सही रहीं। आज ही फलानी जगह एक पॉजिटिव मिला। कोई सोच थोड़े सकता था कि वहाँ भी हैं" 8वीं मंजिल आ गयी थी। मैं निकल आयी।

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लौटते समय कार में बैठी तो व्हाट्सप्प बीप हुई। किसी परिचित ने एक आंटी का वीडियो भेजा था। आंटी कह रही थीं हम सफर में हैं। सफर में जिन लोगों ने टिकट नहीं खरीदा होता उन्हें डरने की ज़रूरत है। हमें टिकट खरीदना है। गरम पानी, गरम खाना, दालचीनी, हल्दी, कालीमिर्च, तुलसी" शायद मूड खराब था तो तुरन्त रियेक्ट कर गई," अरे यार इन आंटी से बोलो ये स्टाइल के साथ वीडियो बनाने का मैटर नहीं है। कोविड 19 अलग बात है। यहाँ टिकट ले कर भी बैठेंगे तो भी पेनाल्टी पड़ जाएगी।

तुलसी, दालचीनी, गरम खाना, गरम पानी पी कर अगर उस लिफ्ट में चढ़ गए जिसमें पहले से कोविड 19 संक्रमित थूक कर गया हो (unknowingly) तो सारे टिकट रखे रह जाते हैं। लिफ़्ट में एक साथ 6-6 लोग घुस रहे। मुझे लगता है कि ऐसी कोई दवा नहीं बनी जो संक्रमित के सम्पर्क में आने पर ढाल बन कर बचा ले और ऐसा कोई संक्रमण भी नहीं ये कि उड़ कर आ जाये।

रोज ऑफिस जाते हैं, वैसे ही इरिटेट हुए पड़े हैं ऊपर से ये पॉजिटिविटी और कॉन्फिडेंस वाले ज्ञान और मुँह चिढ़ा रहे। मैसेज सेंड पर क्लिक करने के बाद मुझे ख़ुद लगा कि मैंने ज़्यादा रियेक्ट कर दिया। मग़र सड़क पर हज़ारों की संख्या में निश्चिंतता का घूमना मुझे सबसे डरावना लगता है आजकल।

जिन मजदूरों को भगाया, अब उन्हीं को लग्जरी बस में भरकर वापस ले जाने वाले कौन हैं?

-विपुल आनंद

रात के करीब 11 बजे एक बेहद लक्सरी बस मेरे गाँव आयी, और 70 लोगों को मजदूरी करने हरियाणा और पंजाब ले गयी...!! मैं ये सब देखकर स्तब्ध था, हैरान था कि अभी तो कुछ दिन पहले ये लोग अपने घर आये थे किन किन समस्याओं को जूझते हुए आये थे इनसे बेहतर कोई नहीं बता सकता (कुछ तो लॉक डाउन में श्रमिक स्पेशल ट्रेन और फिर पैदल भी आये थे)... और अब वापस उन्ही पुराने मालिक के साथ काम करने जा रहे...!! उन्हीं 70 में से एक आदमी से मैंने पूछा आपको अपने मालिक पर विश्वास है..?? वो आदमी बोले हांजी विश्वास है तब तो इतनी बड़ी बस भेजा है। मैंने कहा ये तो उनको आप पर विश्वास है। अगर आपको वहाँ कुछ होता है तो आपको आपके मालिक पर ये भरोसा है कि वो आपके और आपके परिवार की देखभाल करेगा..?? आदमी चुप हो गया। मैंने एक बात और बताइये आप जब लौट रहे थे तो क्या यही मालिक आपको आने का खर्च या ऐसी ही बस का इंतज़ाम कर दिया था ?? आदमी बोला भैया जाना कौन चाहता है, 2 महीने से कोई काम नहीं किया। ₹100 की मजदूरी पर भी काम नहीं मिलता। अगर अब भी नहीं जाऊंगा तो परिवार भूखा मर जाएगा....!! इसके बाद मुझे एहसास हुआ कि सवाल ही गलत आदमी से कर रहा हूँ...

मैं सब कुछ चुपचाप देखकर रह गया। एक दो सवाल कोर्डिनेटर से पूछा तो बोला मेरे पास परमिशन और सारे लेबर के E-Pass हैं। 

ख़ैर, बस में 3 लोग आए थे। 2 ड्राइवर और एक कॉर्डिनेटर। कॉर्डिनेटर से विस्तार से बात करने की कोशिश की, बात नहीं हो पाई वो इन्ही 70 में से किसी के घर खाना खाकर सो गया था।  बस सुबह 4:30 बजे चली गयी..!!

फ़िलहाल मैं LED टंगने के इन्तज़ार में हूँ। LED लगते ही छोटे मोदी जी (शुशील मोदी) का वो वाला बयान देखूंगा, जिसमे 250 मजदूर को खगड़िया जक्शन से श्रमिक सपेशल ट्रैन के नियम की धज्जियाँ उड़ा कर उसी ट्रैन से वापस भेजते हुए बोले थे "हमें बिहार की श्रम शक्ति पर गर्व है"

Thursday, June 11, 2020

कोरोना ने पूंजीवाद को सिरे से विफल साबित कर दिखाया

-राजीव मित्तल

विश्व के पटल से सोवियत संघ को विदा हुए 30 बरस हो गए और तभी से चीन, ईरान, अफगानिस्तान और क्यूबा और दो चार देशों को छोड़ कर सारी दुनिया पर केवल अमेरिका का दबदबा छाया हुआ है..लेकिन आज कोरोना महामारी ने अमेरिका और सारे यूरोप को बेचारा बना कर रख दिया है जबकि मार्क्सवादी शासन की सुप्रीमेसी साबित कर दी है...

चीन में सबसे पहले कोरोना आया, जहां इस महामारी से निपटने का कोई अनुभव नहीं था...इलाज तो छोड़िये राहत की कोई दवाई नहीं थी लेकिन साम्यवादी शासकों ने लॉकडाउन किया.. सख्ती से लागू किया.. स्वास्थ्य व्यवस्था अच्छी की..वुहान शहर को ही नहीं, पूरे हुबेई प्रान्त को बाकी चीन से काट कर उसकी सुरक्षात्मक घेराबंदी कर वहां देशभर से डॉक्टर बुलवा लिये.. सघन टेस्टिंग की सघन इलाज किया और 78 दिन बाद कोरोना से बाहर आ गये..बस, जो संक्रमण फैला, वो वुहान तक सीमित रहा, जो मौतें हुईं वुहान तक सीमित रहीं.. न किसीकी नौकरी गयी न अर्थव्यवस्था डूबी न भगदड़ मची.. अब हालात पूरी तरह नियंत्रण में हैं..बाकी चीन में सब कुछ सामान्य है.. गाडी पूरी तरह पटरी पर आ गई है..तो जी ये कमाल है साम्यवादी शासन का..

क्यूबा अमेरिका से लगा एक पिद्दी से देश है, जहां साम्यवाद आने पर महाशक्ति अमेरिका की नींद हराम हो गयी थी..आज उसी देश के डॉक्टरों की पूरे दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के देशों में जबरदस्त डिमांड है..वियतनाम में कोरोना से शायद ही दो चार मौतें हुई हों, लेकिन अमेरिका को दसियों साल चले युद्ध में मात देने वाले एशिया के इस छोटे से देश ने कोरोना को हर कोने में परास्त किया..जबकि यूरोप के बाकी देशों की राह पर चल रहे रूस का हाल भी अमेरिका जितना ही खराब है..
अब आइये अपने देश में..केरल भारत का ही हिस्सा है.. सबसे पहले कोरोना केरल में आया..राज्य के साम्यवादी शासन ने अच्छी तरह से सब कुछ मैनेज किया.. किसी समुदाय विशेष को जिम्मेदार नहीं ठहराया..स्वस्थ्य सेवा को बेहतर बनाया..उसके लिए इस सबसे छोटे राज्य ने 20 हज़ार करोड़ पहले ही अलग से रख दिया. सारे राज्य की जनता के लिए भोजन की कमी नहीं होने दी.. और कोरोना को कंट्रोल कर लिया.. आज भारत में सबसे अच्छी स्थिति केरल की है..तो ये कमाल है साम्यवादी शासन का..

दस वर्ष पहले तक के पश्चिम बंगाल में साम्यवादी शासन था..अगर आज वहां कम्युनिस्टों का शासन होता तो केरल की तरह अच्छी तरह कोरोना को कंट्रोल कर लिया होता.. साम्यवाद में कुछ ऐसा जादू तो होता है, जो पूंजीवादी देशों को समझ में नहीं आता है.. कोई तो कारण होगा कि पूंजीवाद की क्रूरताओं से दो दो हाथ करने को दुनिया के हर देश में कम्युनिस्ट पार्टी है.. अमेरिका में भी अश्वेत नागरिकों पर हो रहे अत्याचार का विरोध करने में सबसे आगे कम्युनिस्ट ही रहे हैं..

उत्तर कोरिया के शासक को पागल घोषित करने के लिए अमेरिका ने क्या क्या नहीं किया!! हमारे गोदी मिडिया में आये दिन किम जोन उंग को क्रूर पागल शासक घोषित करने के लिए स्टोरी चलती रहती है.. लेकिन कोरोना ने उसे बुद्धिमान साबित कर दिया.. उत्तर कोरिया में कोरोना ने दस्तक भी नहीं दी, दरवाज़ा तोड़ने की तो छोड़िए.. ..उसको पागल साबित करनेवाला अमेरिका और ट्रंप का हाल देखिए, सर्कस के जोकर लग रहे हैं..

भारत की जनता जितना जल्द साम्यवादी विचारधारा का स्वीकार कर लेगी उतना जल्द शांति सुख चैन अमन होगा इस देश में.. तय आपको करना है मार्क्सवाद चाहिए या दमनकारी फासीवाद, विभाजनकारी जातिवाद या शोषणखोर पूंजीवाद!!

कोरोना काल: हमारी ये छोटी-छोटी आदतें हमें बाकी दुनिया से अलग करती हैं

-शंभूनाथ शुक्ल

आज सुबह जैसे ही फ़्लैट के मुख्यद्वार को खोलकर कदम बाहर रखा, वह ज़मीन पर पड़े अख़बार से टकराया। अख़बार उठाया और माथे से लगाया। बचपन से आदत है, कोई किताब या पेपर पैर से छू जाए तो फ़ौरन उसे माथे से लगाते हैं, वर्ना विद्या माता या देवी सरस्वती का अपमान होता है। हम सब को पता है, कि किसी पुस्तक या पेपर में न तो देवी सरस्वती विराजती हैं, न इनको पढ़ने मात्र से हम विद्या-वारिधि बन जाएँगे। पर यह एक आदत है। अख़बार वाले पाँड़े जी को कहूँगा, कि उनके वेंडर अख़बार यूँ ज़मीन पर फ़ेकने की बजाय अड्डी पर रख दिया करें।

अब देखिए, हमारी ये छोटी-छोटी आदतें हमें शेष विश्व से अलग करती हैं और हमारी इम्यूनिटी को मज़बूत भी करती हैं। यह सब अनजाने में होता रहा है। ब्लैकबोर्ड पर जिस चाक से लिखते थे, उसे मास्टर भी थोड़ी खा लेते थे। पाइथागोरस की प्रमेय सिद्ध करते समय जरा सी गलती करने पर पाँड़े मास्टर नीम के हरे सोंटे से टाँगें लाल कर देते थे। आपेक्षिक घनत्व की परिभाषा न बता पाने पर गुप्ता जी कान लाल कर देते थे और अंग्रेज़ी थर्ड पेपर में टेंस न बता पाने अथवा हिंदी से अंग्रेज़ी न कर पाने पर कटियार एवं कुशवाहा मास्टर पूरे पीरियड भर मुर्ग़ा बनवा देते।

बॉबी देखने के लिए जब हम न्यू बसंत जाते तो दिनेश कल्लू को डंडे पर बिठाते और जगदीश बहादुर सिंह को कैरियर पर। खुद पाँच किमी की दूरी तक साइकिल खींचते। अगर घर पर पिताजी, उनके या इन दोनों के कोई परिचित या अपने चचेरे भाई देख लेते तो घर आने पर जूतों से पिटाई होती। स्कूल में प्रिंसिपल रामनायक शुक्ला रूल से झोरते। जीवन में कभी “आई लव यू” बोल नहीं पाए, इसलिए किशोर उम्र के प्रेम अथवा परस्त्री के प्रेम से वंचित रहे। 

तिमाही और छमाही इम्तिहान में फेल होने पर रिज़ल्ट कार्ड पिताजी के समक्ष पेश करने के पूर्व डर का ऐसा पैनिक होता, कि इस ससुरे कोरोना क्या होगा! बाक़ी हर साल प्रमोट तो हो ही जाते। यूपी बोर्ड की दसवीं व 12वीं में परीक्षा में सेकंड डिविज़न पास तो हो गए, पर अंग्रेज़ी में ग्रेस मार्क़्स के साथ। इसलिए सरकारी नौकरी का कोई चांस नहीं था। हालाँकि यह आदेश मुख्यमंत्री चौधरी चरण सिंह का था,  कि विज्ञान वर्ग के छात्र कक्षा दस या बारह में हिंदी या अंग्रेज़ी में फेल हुए तो भी पास माने जाएँगे। अब हिंदी में कौन फेल होता है, अंग्रेज़ी में साठ प्रतिशत छात्र लुढ़के।

लेकिन न सही सरकारी प्राइवेट लाला की नौकरी पाई, और बदलीं भी तथा सम्मान के साथ जिए और किसी का क़र्ज़ नहीं लिया। तब हम भला इस पिद्दी सी बीमारी कोरोना से पैनिक क्यों हों। हाँ, जो कबूतर की तरह सुकुआर (कोमल) हों, वे डरें।