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Monday, July 13, 2020

सचिन पायलट तो तभी से असंतुष्ट थे, जब राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनी थी !



- अमिता नीरव
मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद से ही सबकी नजरें राजस्थान पर टिकी हुई थी। यूँ तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार जिस दिन बनी थी, उसी दिन से उसके कभी भी गिर जाने के कयास लगाए जा रहे थे। राजस्थान में हालाँकि मध्यप्रदेश जैसे हालात नहीं थे, फिर भी बीजेपी ने जिस तरह से सारे एथिक्स को ताक पर रखकर राजनीति में आक्रामकता को मूल्य बना दिया है, उससे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि सारे ही कांग्रेस शासित राज्य बीजेपी के निशाने पर होंगे।


कांग्रेस ने भी इतिहास में राज्य सरकारें गिराई हैं, लेकिन इतनी निर्लज्जता औऱ इतने खुलेआम विधायकों की खऱीद-फरोख्त का साहस नहीं कर पाई है। बीजेपी ने सारी नैतिकता और सारे मूल्यों पर ताक पर रखकर राजनीति की एक नई परिभाषा, मुहावरे, चाल-चलन औऱ चरित्र को घड़ा है। इसी के चलते अब सारे ही कांग्रेस शासित राज्य खतरे में नजर आते हैं। चाहे विधानसभा के नंबर कुछ भी कह रहे हों। 
जब राजस्थान सरकार बनी थी, सचिन तब से ही असंतुष्ट थे। वहाँ मुख्यमंत्री का नाम तय करने में कांग्रेस को पसीना आ गया था। इससे भी यह आशंका बनी ही हुई है कि वहाँ कभी भी कुछ भी हो सकता है। खासतौर पर मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में चले जाने के तगड़े झटके के बाद...। बीजेपी के पास सबकुछ है, पैसा है, ताकत, शातिर दिमाग और सबसे ऊपर सत्ता, जिसके दम पर वह पिछले कुछ सालों में घटियापन की सारी हदें पार करती रही है। 
इन कुछ सालों में देश के एलीट, संभ्रांत औऱ ट्रेंड सेटर तबके ने खासा निराश किया है। बात चाहे किसी भी क्षेत्र की हो, राजनीति, फिल्म, साहित्य या फिर कला की कोई भी विधा। यकीन नहीं आता कि समाज में जो लोग प्रभावशाली जगहों पर काबिज है, वे इस कदर स्वार्थी, डरपोक और गैर-जिम्मेदार होंगे। देश में प्रतिरोध करने वालों को लगातार दबाया जा रहा है, इससे वो आम लोग जो सरकार से सहमत नहीं हैं, वे भी अपनी बात कहने का हौसला खोने लगे हैं। 1947 से बाद से इमरजेंसी को छोड़ दिया जाए तो देश में इतने बुरे हालात शायद ही कभी हुए होंगे।

हमें यह मानना ही होगा कि देश नायक विहीन हैं। जिस किसी की तरफ हमने नेतृत्व के लिए देखा, उस-उसने हमें निराश किया है। राजनीतिक विचारधारा सिर्फ अनुयायियों के हिस्से में ही है, जो लोग सक्रिय राजनीति में हैं उनकी नजर अब सिर्फ औऱ सिर्फ सत्ता पर है। इस वक्त में जबकि हम नेता विहीन हैं, हमारी जिम्मेदारी बहुत-बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। कॉलेज में पढ़ा था कि राजनीति सत्ता के लिए संघर्ष है और ‘साम-दाम-दंड-भेद’ या फिर ‘बाय हुक ऑर बाय क्रुक’ जैसे मुहावरे जीवन के हर क्षेत्र की तरह राजनीति में भी कुछ भी करके सत्ता में आने को प्रोत्साहित करते हैं।

तब हमारे लिए क्या बचता है? क्या हम सिर्फ ऐसे वोटर ही बने रहेंगे जिसे सत्ता में बैठे लोग जैसे चाहे, वैसे प्रभावित कर सकते हैं या फिर हम अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करेंगे? मध्यप्रदेश में सरकार बदलने के बाद विधानसभा में उपचुनाव होने हैं, ऐसे में हमें अपनी भूमिका पर फिर से विचार करना चाहिए। हमें हर हाल में सत्ता की चाहत रखने वालों को आईना दिखाना ही होगा। अब राजनीति में नैतिकता और संवैधानिक मूल्यों की स्थापना के लिए हमें ही आगे आना होगा। वोटर्स को ही यह बताना होगा कि अब अनैतिक तरीके से बनाई गईं सरकारों को हम स्वीकार नहीं करेंगे। यदि सत्ता चाहिए तो अपने चरित्र को बदलना होगा। हमें भी यदि बेहतर समाज चाहिए तो अपना राजनीतिक व्यवहार बदलना होगा।

हर संकट में कुछ बेहतर होने का बीज छुपा होता है, इस दौर में लगातार गिरते राजनीतिक और सामाजिक मूल्यों को बचाने के लिए हमें किसी नायक का इंतजार करने की बजाए, खुद ही अपनी और अपने समाज की जिम्मेदारी लेनी होगी। उन सारे राजनेताओं को नकारिए जो सिर्फ सत्ता की चाह औऱ महत्वाकांक्षा में जनादेश का अपमान कर रहे हैं। यदि सत्ता मूल्यों के साथ खिलवाड़ करती है तो उसे भी सबक सिखाना होगा।

Centre Asks PTI to Pay Over Rs 84 Crores Within a Month for ‘breaches’ in its Delhi office



New Delhi: The Land & Development Office, which comes under the Union Ministry of Housing and Urban Affairs, has sent a notice to news agency PTI, demanding it to cough up more than Rs 84 crore as penalty. The notice dated July 7 says that the penalty has been imposed due to "breaches" at its office in Delhi.

The notice that sought Rs 84,48,23,281 argues that "the less will be pleased to regularise the breaches in the premises temporarily up to 14.07.2020 and withdraw the right of re-entry of the premises subject to the following conditions being fulfilled by you within 30 days from the date of issue of this letter."

The notice also stipulates that the news agency needs to give an undertaking on non-judicial stamp paper stating that it will pay the difference of "misuse/damage charges" if the land rates are revised with effect from 01.04.2016 by the government and will also remove the "breaches" by 14.07.2020 or get them regularised by paying charges.

The notice also warns that further action to execute the deed has to be subject to complete payment and putting the premise to use according to the masterplan.

The Land & Development Office so warned that an additional 10 per cent interest may need to be coughed out by PTI if it fails to furnish the concerned amount within the stipulated time period.

Additionally, if the news agency fails to comply with the terms within the said period, the concession will be withdrawn. In other words, they will have to pay the penalty up to the actual date of payment then and will also be subject to actions.

This stern notice for alleged violations by PTI comes closely on the heels of national broadcaster Prasar Bharati locking horns with PTI over its reportage that it called "anti national".

Prasar Bharti had recently sent a letter threatening to end its "relationship" with PTI after it carried an interview of Chinese Ambassador Sun Weidong, where he blamed India for the India-China violent standoff that saw 20 Indian bravehearts getting martyred.

Thursday, July 9, 2020

व्यंग्य: एक बार की बात है, जब मोदी जी गांव का दौरा करने पहुंचे और सामने आ गई बड़ी मजबूरी !


- अशफाक अहमद
एक बार की बात है, एक सुदूर गांव के पंचायत चुनाव में प्रचार के लिये जाना हुआ। गांव ऐसी जगह था कि न वहां अभी तक देश भर में हवाई अड्डों का जाल बिछाने वाली सरकार कोई हवाई अड्डा ही बना पाई थी और न निजीकरण के बाद दिन दूनी रात चौगुनी करने वाला रेलवे कोई स्टेशन ही खोल पाया था तो साहब बहादुर का काफिला गाड़ियों पर सवार अमेरिका से बढ़िया डामर युक्त सड़कों पर धूल उड़ाते गांव पहुंचा और नौकरियां जाने के बाद घर वापसी की हुई भारी भीड़ देख मोदी जी ने सालों पहले जा चुकी कांग्रेसी सरकार के धुर्रे उड़ा दिये।

जनता ने भी जम के तालियां पीटीं, आखिर सभा के बाद सरपंच की तरफ से सबको खाने का आश्वासन भी उन्हें ऊर्जा से भर रहा था। सबने खाया पिया.. मोदी जी भी दिल्ली से साथ लाये काजू के आटे वाली रोटी और ताईवानी मशरूम की सब्जी खाये। वह कहीं भी जाये, न अपनी गरीबी भूलते हैं न गरीबी का भोजन.. महान नेताओं में ऐसे ही गुण होते हैं। 

बहरहाल, अब माहौल का असर था कि डामरयुक्त सड़कों के रेशमी धक्के कि पेट ने भी सातों सुरों में रियाज करने की ठान ली और लगा सहगल के अंदाज में सुर खींचने.. उसके ऊपर गुड़गुड़ की करतल ध्वनि करते काजू और मशरूम के मिक्सचर ने भी बराबर की तान दी। मोदी जी परेशान कि अगर जल्द ही इन्हें आजादी की राह न दिखाई तो आज पजामी में ही लड्डन खां का पीला रायता अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज करायेगा।

गाड़ी रुकी तो काफिला भी थम गया। भले सरकार ने हर ग्रामीण को दो-दो शौचालय दिये हों लेकिन यहाँ तो एक भी न था। अब मजबूरी थी, एक झाड़ के पीछे बआवाजे बुलंद रियाज करते मिक्सचर को बाहर का रास्ता दिखाये, बिसलेरी से पोंछा मारा और चल दिये। बात छोटी सी थी और वहीं खत्म हो जाती.. अगर वहीं थोड़ी दूर मौजूद दो लड़के यह सब देख न लेते, और अपने मोबाइल से चुपके से वीडियो न बना लेते और फेसबुक पर अपलोड न कर देते।

अब आगे जो हुआ वह काजू और मशरूम के मिक्सचर के रियाज से भी जबर था। लड़कों ने तो बस तफरीहन वीडियो डाली कि मोदी जी भी आम इंसानों की तरह हल्के होते हैं। नहीं मतलब.. लोग सोचते हैं कि वे तो दिव्य पुरुष हैं, जैसे दूध भरी भैंसों को मिल्किंग मशीन से दुहा जाता है, कुछ उसी तरह का सक्शन पाईप इस्तेमाल होता होगा, लेकिन ऐसा नहीं था।

पर सोशल मीडिया ही क्या जहाँ बवाल न मचे। वीडियो हाथों हाथ लिया गया। मोदी विरोधी तबका दांद काटने लगा तत्काल कि भक्तों.. कहाँ गये वह तुम्हारे घर-घर शौचालय.. देख लो कैसे प्रधान जी खुद खुले में हग रहे हैं। कांग्रेस ने अगले ही दिन प्रेस कांफ्रेंस की और सुरजेवाला ने अपना सूरज यह कहते हुए प्रज्वलित किया कि यह मोदी सरकार की असफलता की स्पष्ट निशानी है कि गांवों में लाखों शौचालय बनवाने का दावा करने वाले खुद खुले में हग रहे हैं। खुले में शौच पर बाकायदा सरकार ने जुर्माना लगाया था और मास्टरों की ड्यूटी लगाई थी कि उनकी फोटो खींच कर सोशल मीडिया पर डाली जाये और उन्हें शर्मिंदा किया जाये। तस्वीर/वीडियो डाला जा चुका है.. ठीक है कि मोदी सरकार में लोग शर्मिंदा नहीं होते लेकिन क्या मोदी जी जुर्माना भी भरेंगे?

भाजपाइयों ने पलटवार किया कि नेचर काॅल है, इसपे किसी को क्या कंट्रोल। आदमी दो पैरों पर कूदता फांदता कहीं भी जा सकता है, शौचालय थोड़े हर जगह चला जायेगा। अब लग गयी तो लग गयी। क्या सत्तर साल पहले सब खुले में नहीं हग रहे थे जो आज सबके पेट में दर्द हो गयी। हगना आदमी का संवैधानिक अधिकार है, हर भारतीय कहीं भी हग सकता है.. रैली के मंच पर, ट्विटर/फेसबुक/व्हाट्सएप पर, टीवी पर, अर्थव्यवस्था पर, न्यायपालिका पर, कार्यपालिका पर, लोकतंत्र के चौथे खम्बे पर भी.. लेकिन फिलहाल वहां हम मूत कर काम चला रहे हैं।

वामपंथी बड़े सयाने.. लग गये खेत के मालिक का पता निकालने। पता चला खेत तो एक मुल्ले गयासुद्दीन का था.. उन्होंने तत्काल डिक्लेयर कर दिया कि यह मोदी जी के मन में दबी नफरत है मुस्लिमों के प्रति कि उन्होंने जानबूझकर एक मुसलमान के खेत में हगा। वे जताना चाहते हैं कि मुसलमानों तुम इसी लायक हो कि तुम्हारे खेत में हगा जाये। यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है और आर्टिकल इतने बटे उतने का स्पष्ट उल्लंघन है। मोदी जी को इसके लिये मुसलमानों से माफी मांगनी चाहिये। कन्हैया के आजादी सांग में एक लाईन और बढ़ गयी.. हमें चाहिये.. शौच से आजादी।

अब भाजपा के आईटी सेल ने मुद्दा लपक लिया। वे लगे प्रचार करने कि हर राष्ट्रवादी का नैतिक कर्तव्य है कि वह न सिर्फ मुल्लों के खेत में हगे, उनके घरों में हगे, बल्कि पाये तो उन पर ही हग दे। उन्होंने प्रोफेसर ओक का लिखा कोई गुप्त दस्तावेज भी ढूंढ निकाला है कि यह ऐतिहासिक फैक्ट है कि औरंगजेब सिर्फ रात को हगता था और इसके लिये किसी हिंदू भाई का खेत ही तलाशता था, चाहे इसके लिये उसे चेतक के कनवर्टेड प्रपौत्र मौलाना पेचक पर बैठ कर सौ किलोमीटर दूर क्यों न जाना पड़े।

मुसलमान बिलख पड़े कि देश के प्रधान का उनके साथ यह कैसा सौतेला व्यवहार है, क्या वे इस देश के नागरिक नहीं हैं? उन्होंने राहत साहब से शेर भी मोडिफाई करवाया है.. सभी की पोट्टी शामिल है यहाँ की मिट्टी में.. किसी के बाप का खेत थोड़े है। सेकुलर गैंग कंधे से कंधा मिला कर उनके साथ खड़ी हो गयी कि वे अपने मुसलमान भाइयों को अकेला नहीं फील होने देंगे और सब मिल कर उनके खेतों की रक्षा करेंगे। इस एकता को देख यूपी वाले महंत ने फरमान जारी कर दिया कि जो भी मुसलमान किसी राष्ट्रवादी को हगने के लिये अपना खेत नहीं देगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जायेगी और उसकी संपत्ति कुर्क कर ली जायेगी।

उधर ट्विटर पर भाजपा आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने एक वीडियो अपलोड करके बताया कि उस खेत में जो झाड़ थे, वे पांच-पांच सौ रुपये दे कर खड़े किये थे ताकि मोदी जी उन्हें निर्जीव झाड़ समझें और वे गवाह बन सकें। इस पर एक झाड़ ने रीट्वीट करते हुए बताया कि वायरल वीडियो में दिख रहा झाड़ वो ही है और यह पैसे उन्हें खुद प्रधानमंत्री के काफिले वालों ने दिये थे ताकि वे आड़ उपलब्ध करा सकें और यहाँ भी उनके साथ चीटिंग हुई है, क्योंकि पांच सौ का वादा कर के पांच रुपये ही दिये।

राष्ट्रवादी चैनलों पर चीखती हेडलाइन्स चलने लगीं.. मोदी के खिलाफ साजिश.. कौन है मोदी जी की तशरीफ देखने का लालची.. गयासुद्दीन और आईएसआई का कनेक्शन.. मोदी जी को बदनाम करने की पाकिस्तान की साजिश.. गयासुद्दीन के पाकिस्तान कनेक्शन पर घंटों डिबेट हुई, एंकर्स ने गयासुद्दीन के नजदीकियों के बयान भी दिखाये कि कैसे गयासुद्दीन ने पिछले तीन सालों में पूरे पांच बार पाकिस्तान का नाम लिया है। नाम ले कर आगे कहा क्या.. इसका पता अभी नहीं चल पाया है।

प्राइम टाइम पर रवीश कुमार ने भी प्रोग्राम किया और देश को बताया कि यह ठीक है कि प्रेशर किसी को भी और कहीं भी बन सकता है, इस पर प्रधानमंत्री पर सवाल उठाना गलत है लेकिन क्या एसपीजी को यह नहीं पता था कि खेत एक गरीब मुस्लिम का था और प्रतीकात्मक रूप से देश भर में एक मैसेज जायेगा देश भर में कि मुसलमानों को ले कर प्रधानमंत्री का नजरिया क्या है.. तो उन्हें थोड़ी एहतियात करना चाहिये था। आखिर आसपास हिंदुओं के भी खेत मौजूद थे।

यह बात जब गांव कस्बे में रहने वाले, आम सरकार विरोधी तक पहुंची तो उसने मुंह चलाते हुए पान की पीक उगली और आस्तीन चढ़ाते हुए बोला कि यह मोदी देश का भाईचारा खा के ही रहेगा। हमको मिल के इसका विरोध करना पड़ेगा। किसी ने पूछा कि किया क्या अब मोदी ने तो जवाब दिया कि वह तो हमको पता नहीं पर मोदी ने किया है तो कुछ गलत ही किया होगा.. और आम मोदी समर्थक तक पहुंची तो उसने मुंह में भरा गुटखा 'पिच' करके थूका और हाथ खड़े करते हुए नारा लगाया, भारत माता की जय.. मोदी जी तुम इनके लकड़ी करो, हम तुम्हारे साथ हैं। किसी ने पूछा कि आखिर किया क्या है तो भक्त ने गर्व से छाती फुलाते हुए कहा, वो तो पता नहीं पर मोदी जी ने किया है तो कुछ अच्छा ही किया होगा।

इन सब बातों से बेखबर मोदी जी ने ड्राइवर को अपनी विपदा सुनाई कि भई पृथ्वी पर जो था वह सब देख लिये.. कोई नया देश नहीं पैदा हुआ क्या। ड्राइवर ने कैलासा के अवतरण की शुभ सूचना दी तो मोदी जी ने स्टीयरिंग उधर ही घुमा लेने को कहा।

Tuesday, July 7, 2020

ब्रांड मोदी: मायाजाल टूट रहा है, घरेलू मोर्चे पर समस्याएं मुंह बाए खड़ी हैं, पीक इज ओवर !

- मनीष सिंह
इंडियाज वन मैन बैंड के शीर्षक के साथ यह तस्वीर, द इकॉनमिस्ट के मुख्यपृष्ठ पर छपी थी। मौका उनके पहले कार्यकाल का पहला साल पूरा होने का था। आज दूसरे कार्यकाल का पहला वर्ष पूर्ण हो चुका है। चीन के सम्मुख इस बैंड की प्रस्तुति सम्भवतः समाप्त हो चुकी है, और समय चक्र का पहिया उतार पर है। गलवान में ब्रांड को सबसे बड़ा लगा बट्टा लगा है... अतुलनीय विदेश नीति का। 

दरअसल नोटबन्दी के बाद से अर्थव्यवस्था की दुरावस्था आम भारतीय महसूस करने लगा था। तमाम आंकड़ाबन्दी, दावों और भाषणों के बावजूद जेब के खाली होने का अहसास हर किसी को हो रहा था। जीएसटी के अटपटे क्रियान्वयन, राजस्व के बंटवारे के एकपक्षीय प्रावधानों के बाद रही सही आर्थिक उम्मीदें भी तिरोहित हुई। मगर देश के लिए त्याग का आव्हान को जनता ने सुना। माना कि कुछ बड़ा होने वाला है। और फिर जी अभी भरा भी नही था। ऐसे में  वैश्विक मंदी ने ब्रांड मोदी को एक अवसर देने का बहाना भी दे दिया। 

जी इसलिए नही भरा था, विदेशों में डंका बजने की गूंज जनमानस के कानों में गूंज रही थी। वो सुखद, गर्व से भरा अहसास जो जो बड़े बड़े आयोजनों, भव्य टेलीकास्ट और नयनाभिराम छवियों से जन्मा था। भारत के नेता का, नामचीन देशों के प्रमुखों के साथ कूटनीतिक मैत्री से इतर, निजी सम्बधों का चतुर प्रदर्शन छाप छोड़ने में कामयाब रहा। घरेलू असफलताएं नकार दी गयी। शायद यह उम्मीद थी कि ब्रांड मोदी अंततः स्थितियां सम्भाल लेगा। दुनिया आगे आकर उसका, याने भारत देश का साथ देगी। 

गलवान में नियंत्रण रेखा से पीछे हटती फौजो ने इस अंतिम आशा को पलीता लगा दिया है। पन्द्रह दिनों से जारी तनातनी के दौरान किसी भी वैश्विक फोरम, या महत्त्वपूर्ण देश ने चीन को सीधे नही लताड़ा। 1962 में अमेरिका और 1971 में रूस की तरह खुला समर्थन देना तो दूर, चीन की हरकत के खिलाफ बयान तक नही दिए। विश्व पटल पर जितना अकेला भारत पिछले 15 दिनों में दिखाई दिया, वैसा आजाद भारत के इतिहास में नही दिखा है। 

स्थितियां यह है कि इस पूरे दौर में भारत सरकार के मंत्री, पार्टी, पदाधिकारी नदारद दिखे। असल मे मोदी के वन मैन शो ने उनके लिए स्पेस छोड़ा ही नही था। नतीजा यही कि ब्रांड मोदी को बचाने के लिए स्केपगोट भी उपलब्ध नही। विदेश नीति के साथ राष्ट्र की सुरक्षा के मसले पर भी देश की आशाओं पर भी पानी फिरा है। 20 सैनिको की लाशें गिरने के बाद भी, प्रधानमंत्री का देश से यह कहना कि कोई अतिक्रमण नही हुआ, फ़ौज की शहादत को नकारने से कम नही था। 

प्रधानमंत्री को इस टूटते मायाजाल का अहसास है। उद्बोधनों  की उनकी शैली उनकी सामान्य ऊर्जा के विपरीत बुझी बुझी, थकी और निराश दिखी। लेह तक जाकर मोर्चे के सैनिको से न मिलना, और सैनिको को दिये उदबोधन में चीन का नाम तक न लेना, उनके बचे कार्यकाल में लौट लौट कर याद जाएंगी। यह आसानी से मिटने वाली स्मृतियां नही है। 

सीएए के विरोध में बढ़ते प्रदर्शनों, और जनता में गहराते अविश्वाश के बीच कॅरोना ने एक वक्ती खिड़की उपलब्ध करवा दी थी। हिमालय पर निराशाजनक प्रदर्शन के बाद अब घरेलू मोर्चे पर हिमालय जैसी समस्याएं वापस मुह बाए खड़ी हैं। और प्रधानमंत्री के हाथ इस वक्त खाली हैं। 

खाली खजाने, गिरती लोकप्रियता, दिशाहीन ब्यूरोक्रेसी के बाद घटते हुए अंतरास्ट्रीय रुतबे के बीच आशा की किरण फिलहाल कहीं नही दिखती। ऐसे में चार साल के लम्बे अरसे तक, 2014 के मोदी चिंघाड़ रहे मोदी की इस प्रेतछाया को ढोने को देश, और 2020 के मोदी खुद अभिशप्त है। डंके सुनाई नही दे रहे। बैंड का क्रेसेंडो धीमा हो रहा है। पीक इज ओवर।

कोरोना से लड़ाई की पब्लिसिटी और सिस्टम की जमीनी हकीकत में फर्क जानना है तो इसे पढ़िए

- मृत्युंजय शर्मा
सबसे पहले मैं ये कहना चाहता हूं कि ये कोई पॉलिटिकल एजेंडा नहीं है, आप मेरे ट्विटर और फेसबुक अकाउंट पर देख सकते हैं कि मैं मोदी सरकार का समर्थक रहा हूं. लेकिन अब मुझे लगता है कि मोदी सरकार केवल मेकओवर कर रही है और केवल मीडिया हाउस को खरीद कर, टीवी और सोशल मीडिया पर अपना ब्रांड बना कर कैंपेन कर लोगों को मिसलीड कर रही है.

इसकी कहानी शुरू होती है, पिछले सोमवार से. पिछले सोमवार से पहले मेरी वाइफ को पिछले एक हफ्ते से फीवर आ रहा था. शायद किसी दवाई की एलर्जी हो गई थी, मेरे घर के पास के ही अस्पताल में ही उसका ट्रीटमेंट चल रहा था. अचानक से उसे कफ की प्रोबलम भी होने लगी. फिजीशियन ने सलाह की कि आप सेफ साइड के लिए कोरोना का टेस्ट करा लो. टीवी पर देख कर हमें लगता था कि कोरोना का टेस्ट बहुत आसान है और अमेरिका और इटली जैसे देशों से हमारे देश की हालत बहुत अच्छी है. सरकार ने सब व्यवस्था कर रखी है. इसी इंप्रेशन में हमने कोरोना का टेस्ट कराने की बात मान ली.

मुझे पता था कि सरकारी अस्पताल में इतनी अच्छी फेसिलिटी मिलती नहीं है, हमने कोशिश की कि कहीं प्राइवेट में हमारा टेस्ट हो जाए. हालांकि सभी न्यूज़ चैनल यह दिखा रहे थे कि सरकारी अस्पताल में बहुत अच्छी सुविधाएं हैं, लेकिन फिर भी मैंने सोचा कि प्राइवेट लैब में अटेंम्ट करता हूं. कोरोना के टेस्ट के लिए जितने भी प्राइवेट लैब की लिस्ट थी, मैंने वहां कॉन्टेक्ट करने की कोशिश की लेकिन वहां कांटेक्ट नहीं हो पाया. जहां कॉन्टेक्ट हो पाया, उन्होंने मना कर दिया कि वो कोरोना का टेस्ट नहीं कर रहे हैं. अब मेरे पास आखिरी ऑप्शन बचा था कि गवर्नमेंट की हैल्पलाइन से मदद लेते हैं. मैंने वहां कॉल किया. गवर्नमेंट का सेंट्रल हैल्पलाइन, स्टेट हैल्पलाइन और टोल फ्री नम्बर तीनों पर हमारी फैमली के तीनों व्यस्क लोग, मैं, मेरा भाई और मेरी वाइफ, हम तीनों इन हैल्पलाइन पर फोन लगातार मिलाते रहे. 

तकरीबन एक घंटे बाद मेरे भाई के फोन से स्टेट हैल्पलाइन का नंबर मिला. उस हैल्पलाइन से किसी सामान्य कॉल सेंटर की तरह रटा रटाया जवाब देकर कि आपको कल शाम तक आपको फोन आ जाएगा, वगैहरा कह कर फोन डिस्कनेक्ट करने की कोशिश की, लेकिन मैंने बोला कि सिचुएशन क्रिटिकल है, अगर किसी पेशेंट को कोरोना है तो उसे जल्द से जल्द ट्रीटमेंट देना चाहिए, ऐसी सिचुएशन में हम आपकी कॉल का कब तक कॉल करेंगे. हमने उनसे पूछा कि टेस्ट का क्या प्रोसीजर होता है, कॉल के बाद क्या होता है, इसका उनके पास कोई जवाब नहीं था. मैं निराश हो चुका था.

मेरे पास डीएम गौतमबुद्ध नगर का फोन था. सुहास साहब, उनकी भी बहुत अच्छी ब्रांड है. उनको कॉल किया तो उनके पीए से बात हुई. मैंने उनको बताया कि मेरे घर में एक कोरोना सस्पेक्ट है और कोई भी नम्बर नहीं मिल रहा है, ये क्या सिस्टम बना रखा है, तो उनका कहना था कि इसमें हम क्या करें, ये तो हैल्थ डिपार्टमेंट का काम है तो आप सीएमओ से बात कर लो. मैंने उनसे कहा कि आप मुझे सीएओ का नम्बर दे दो. उन्होंने कहा, मेरे पास सीएमओ का नंबर नहीं है. यह अपने आप में बड़ा ही फ्रस्टेटिंग था कि डीएम के ऑफिस के पास सीएमओ का नम्बर नहीं है, या डीएम के पीए को इस तरह से ट्रेन किया गया है कि कोई फोन करे तो उसे सीएमओ से बात करने को कहा जाए. 

बहुत आर्ग्युमेंट करने के बाद उन्होंने मुझे डीएम के कंट्रोल रूम का नंबर दे दिया कि आप वहां से ले लो. फिर मैं इतना परेशान हो चुका था कि डीएम के कंट्रोल रूम को फोन करने की मेरी हिम्मत नहीं हुई, फिर मैंने खुद ही इंटरनेट पर नंबर ढूंढ कर निकाला. इसके बाद मैंने सीएमओ को कॉल किया. सीएमो को कॉल करने के बाद वहां से भी कोई सही जवाब नहीं मिला, उन्होंने कहा, इसमें हम क्या कर सकते हैं आप 108 पर एंबुलेंस को कॉल कर लो. और एंबुलेंस को ये बोलना कि हमें कासना ले चलो. वहीं हमने कोरोनावायरस का आइसोलेशन वार्ड बनाया हुआ है. जबकि मीडिया में दिन रात यह देखने को मिलता है कि नोएडा में कोरोना के इतने बड़े-बड़े अस्पताल हैं, फाइव स्टार आइसोलेशन वार्ड हैं वगैहरा लेकिन फिर भी उन्होंने हमें ग्रेटर नोएडा में कासना जाने को कहा. 

फिर बहुत मुश्किल से 108 पर कॉल मिला और फिर घंटे भर की जद्दोजहद के पास 108 के कॉलसेंटर पर बैठे व्यक्ति ने एक एंबुलेंस फाइनल करवाया. जब मेरे पास एंबुलेंस आई उस समय रात के 10 बज चुके थे. मैं शाम के सात बजे से इस पूरी प्रक्रिया में लगा था. यूपी का लॉ एंड ऑर्डर देखते हुए रात के दस बजे मैं अपनी वाइफ को अकेले नहीं जाने दे सकता था. मेरे घर में 15 महीने की एक छोटी बेटी भी है और घर में केवल एक मेरा एक भाई ही था जिसे बच्चों की केयर के बारे में कोई जानकारी नहीं थी, फिर भी मैं अपनी बच्ची को उसके पास छोड़कर वाइफ के साथ एंबुलेंस में बैठ गया और वहां से आगे निकले.

आगे बढ़ने के बाद ड्राइवर ने बोला कि हम ग्रेटर नोएडा नहीं जा सकते, मुझे खाना भी है, मैंने चार दिन से खाना नहीं खाया और वो बहुत अजीब व्यहवार करने लगा. फिर वो हमें किसी गांव में ले गया, वहां से उसने अपना खाना और कपड़ा लिया और फिर वहां से दूसरा रूट लेते हुए हमें वो ग्रेटर नोएडा लेकर गया. हमें गवर्नमेंट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ में हमें ले जाया गया. वहां एक कम डॉक्टर मिलीं जो ट्रेनी ही लग रहीं थीं, उन्होंने दूर से ही वाइफ से पूछा कि आपको क्या सिमटम हैं, वाइफ ने अपने सिमटम बताए, तो उन्होंने कहा कि आप दोनों को कोरोना का टेस्ट करना पड़ेगा. रिपोर्ट 48 घंटे में आ जाएगी. और अगर आप कोरोना का टेस्ट करवाते हैं तो आपको आईसोलेट होना पड़ेगा. 

मैंने कहा कि मेरे लिए यह संभव नहीं है, मेरी 15 महीने की बच्ची है, मुझे वापस जाना पड़ेगा, आप बस मुझे वापस भिजवा दो. उन्होंने कहा कि हम वापस नहीं भिजवा सकते हैं. और अगर आप आइसोलेट नहीं होना चाहते हैं तो आप यहीं कहीं बाहर रात गुजार लो सुबह देख लेना आप कैसे वापस जाओगे. यह लॉकडाउन की सिचुएशन की बात है जिसमें कोई भी आने जाने का साधन सड़क पर नहीं मिलता है. 

अचानक से उन्होंने किसी को कॉल किया और उधर से किसी मैडम से उनकी बात हुई और उन्होंने फोन पर कहा कि नहीं हम हस्बैंड को नहीं जाने दे सकते क्योंकि वो भी एंबुलेंस में साथ में आए हैं. मैंने उनसे कहा कि 48 घंटे तो मेरा भाई मैनेज कर लेगा लेकिन आप पक्का बताइए कि 48 घंटे में रिपोर्ट आ जाएगी? इस पर उन्होंने कहा कि हां 48 घंटे में रिपोर्ट आ जाएगी आप अपना सैंपल दे दो. रात को ही हमारी सैंपलिंग हो गई और फिर से हमें एंबुलेंस में बिठाला गया. 

एंबुलेंस में हमें तीन और सस्पेक्ट्स के साथ बिठाला गया और इसके पूरे चांस थे कि अगर मुझे कोरोना नहीं भी होता और उन तीनों में से किसी को होता, तो मुझे और मेरी बीवी को भी कोरोना हो जाता. एक एबुंलेंस में पांच लोगों को पास-पास बिठाया गया. उनकी सैंपलिंग भी हमारे आस-पास ही हुई थी. इसके बाद हमें वहां से दो तीन किलोमीटर दूर एससीएसटी हॉस्टल मे आइसोलेशन में ले जाया गया. 

मेरी सैंपलिंग होने के बाद भी ना मुझे कोई ट्रैकिंग नंबर दिया गया, ना मेरा कोई रिकॉर्ड मुझे दिया गया कि मैं कहां हूं मेरे पास कोई जानकारी नहीं थी. इसके पास मेरी वाइफ को लेडीज वार्ड भेज दिया गया और मुझे जेंट्स वार्ड. जेंट्स और लेडीज़ दोनों का वॉशरूम कॉमन था. जब मुझे मेरा रूम दिया गया तो वहां चारपाई पर बेडशीट के नाम पर एक पतला सा कपड़ा पड़ा हुआ था और दूसरा कपड़ा मुझे दिया गया और बोला गया कि आप पुराना बेडशीट हटा कर ये बिछा लेना. 

रात के एक बज रहे थे, जो खाना मुझे दिया गया वो खराब हो चुका था, लेकिन मैंने इस पर कोई सवाल नहीं उठाया मैं बिना खाए वैसे ही सो गया. उसके बाद मैं सुबह उठा मुझे फ्रेश होना था, मैं नीचे गया और हाथ धोने के लिए साबुन मांगा. मुझे जवाब मिला कि पानी से ही हाथ धो लेना. सैनिटाइजेशन के नाम पर जीरो था वो आइसोलेशन सेंटर. चारों तरफ कूड़ा फैला पड़ा था. 

मुझे एक -दो घंटे कह कर पूरे दिन साबुन का इंतजार करवाया गया लेकिन मुझे साबुन नहीं मिला. इस चक्कर में ना मैंने खाना खाया औ ना मैं फ्रेश हो पाया. मैंने सोचा कि केवल 48 घंटे की बात है, काट लेंगे. अगले दिन जब मैं फिर गया साबुन मांगने तो फिर मुझे आधे घंटे में साबुन आ रहा है कह कर टाल दिया गया. करीब 12 बजे मेरी उनसे बहस हो गई तो उन्होंने अपने लिक्विड सोप में से थोड़ा सा मुझे एक कप में दिया तब जाकर मैं फ्रेश हो पाया और मैंने खाना खाया. 

वहां बिना कपड़ों और सफाई के हालत खराब हो रही थी, 48 घंटे के बाद मैं पूछने गया तो मुझे बताया कि इतनी जल्दी नहीं आती है रिपोर्ट 3-4 दिन इंतजार करना होगा. वहां उन्होंने बाउंसर टाइप कुछ लोग भी बिठा रखे हैं ताकि कोई ज्यादा सवाल जवाब ना करे. वहां मैंने देखा कि वहां चाहें आप नेगेटिव हो या पॉजिटिव हो किसी की भी 7-8 दिन से पहले रिपोर्ट नहीं आती है. 

हर हाल में मरना है, सरकार आपके लिए वहां कुछ नहीं कर रही है. केवल आपको आइसोलेशन वार्ड में डाल दिया जाता है कि केवल सरकार की नाकामी छिप जाए. देट्स इट. वहां पर 80% लोग जमात और मरकज वाले और उनके संपर्क वाले लोग थे. उनका भी यही हाल था. उनकी भी रिपोर्ट नहीं बताई जा रही थी. करीब 72 घंटे बाद जब मैंने दोबार पूछा कि मेरी रिपोर्ट नहीं आ रही है तो वहां पर मौजूद एक व्यक्ति ने कहा कि हमें नहीं पता होता है कि आपकी रिपोर्ट कब आएगी. हमें केवल इतना पता है कि आपको यहां से जाने नहीं देना है जब तक आपकी रिपोर्ट नहीं आ जाती है. मुझे लग रहा था कि उनके पास कोई इंफॉर्मेशन नहीं थी, कोई ट्रैकिंग की व्यवस्था नहीं थी. जो पहले आ रहा था वो बाद में जा रहा था, जो बाद आ रहा था वो पहले जा रहा था. 

मैंने दोबारा डीएम के नंबर पर कॉल करना शुरू किया, फिर वो स्विच ऑफ हो गया और फिर वो आज तक वो नंबर बंद है, शायद नंबर बदल लिया है. फिर मैंने नोएडा के सीएमओ को कॉल करना शुरू किया, उन्होंने कॉल नहीं उठाया. मैंने मैसेज किया कि मेरी 15 महीने की बेटी है जो मदर फीड पर है और फिलहाल मेरे भाई के साथ अकेली है, मुझे आपसे मदद चाहिए. लेकिन वहां से भी कोई जवाब नहीं आया. मुझे समझ नहीं आताा कि कोरोनावायरस के इतने क्रूशियल समय में आप कैसे 5-6 दिन में रिपोर्ट दे सकते हैं! 

सीएमओ ने मेरा मैसेज पढ़ा और फिर मेरा नंबर ब्लॉक कर दिया. फिर मैंने डिप्टी सीएमओ को भी कॉल किया लेकिन फोन नहीं उठा. मैंने काफी हाथ-पैर मारे, मेरा फ्रस्ट्रेशन बहुत बढ गया था. एक डॉक्टर आते हैं वहां नाइट ड्यूटी पर, उन्होंने कहा कि मेरे पास कोई इंफॉर्मेशन नहीं हैं यहां पर मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता, आप मुझसे कल सुबह बात करना. मेरे साथ ही एक और लड़का आइसोलेट हुआ था, गंदगी और गर्मी के कारण वो कल मेरे सामने बेहोश हो गया. कोई उसे उठाने, उसे छूने के लिए, उसके पास जाने को राजी नहीं था. वहां किसी भी पेशेंट की तबियत खराब हो रही थी तो कोई उसके पास नहीं जा रहा था. अगर किसी को फीवर है तो पैरासिटामोट देकर वार्ड के अंदर चुपचाप सोने को कहा जा रहा था. सीढियों के पास इतना कूड़ा इकठ्ठा हो रहा था कि बदबू के मारे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था. सब केवल अपनी औपचारिकता कर रहे थे वहां. बड़े अधिकारी जो वहां विजिट कर रहे थे वो बाहर से ही बाहर निकल जा रहे थे, अंदर आकर हालात जानने की कोशिश किसी ने नहीं की.

आखिरकार कल शाम तक जब मेरी रिपोर्ट नहीं आई और मेरे साथ वालों की आ गई तो मैंने उनसे फिर पूछा कि मेरी रिपोर्ट क्यों नहीं आई अभी तक. क्यों कोई ट्रेकिंग सिस्टम नहीं है, क्यों किसी को कुछ पता नहीं है. तो उनका वही रटा रटाया जवाब मिला कि हम केवल आइसोलेट करके रखते हैं, हमें इसके अलावा और कोई जानकारी नहीं है. जब रिपोर्ट आएगी आप तभी यहां से जाओगे.

इसके बाद मेरी वाइफ का फोन आया कि उन्होंने सुना है कि लेडीज को कहीं और शिफ्ट कर रहे हैं, किसी और जगह ले जाएंगे. मैं अपनी वाइफ के साथ नीचे गया और पता चला कि लेडीज को गलगोटिया यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में आइसोलेशन वार्ड में शिफ्ट कर रहे हैं. मैंने उनसे कहा कि मैं अपनी वाइफ को अकेले नहीं जाने दूंगा. वरना अगर इन्हें कुछ भी होता है तो आप रेस्पोंसिबल होगे. फिर उन्होंने मेरी बात मानी और कहा कि आपको भी इनके साथ भेज देंगे और फिर उन्होंने मुझे बाहर बुला लिया. बाहर बुलाने के बाद में उन्होंने मेरे हाथ में पर्ची पकड़ाई कि ये इस वार्ड से उस वार्ड में आपका ट्रांसफर स्लिप है. 

मैंने पर्ची को देखा तो उसमें पहली लाइन में मुझे लिखा दिखा कि "मृत्युंजय कोविड -19 नेगेटिव". इस पर मैंने उनसे कहा कि अरे जब मेरी रिपोर्ट आई हुई है तो आप मुझे दूसरे वॉर्ड में क्यों भेज रहे हो. इस पर उन्होंने मेरे हाथ से पर्ची ले ली और कहा कि शायद कोई गलती हो गई है. इतने गैरजिम्मेदार लोग हैं वहां पर. फिर उन्होंने क्रॉसवेरिफाई किया और बाहर आकर कहा कि हां आपकी रिपोर्ट आ गई है. आपकी रिपोर्ट नेगेटिव है. आपकी वाइफ की रिपोर्ट नहीं आई है. इन्हें जाना पड़ेगा. आप इस एंबुलेंस में बैठो, आपकी वाइफ दूसरी एंबुलेंस में बैठेंगी. 

मैंने उनसे सवाल किया कि मेरी वाइफ की सैंपलिंग मेरे से पहले हुई थी तो ऐसा कैसे पॉसिबल है कि मेरी रिपोर्ट आ गई लेकिन मेरी वाइफ की नहीं आई? मैंने सोचा ज़रूर कुछ गलती है. मैंने एंबुलेंस रुकवा दी कि मैं बिना जानकारी के नहीं जाने दूंगा. फिर वो दो स्टाफ के साथ अंदर गए और फिर कुछ देर बाद बाहर आकर बताया कि हां आपकी वाइफ का भी नेगेटिव आया है. वहां कोई प्रोसेस, कोई सिस्टम नहीं है, जिसके जो मन आ रहा है वो किए जा रहा है. किसी को नहीं पता कि चल क्या रहा है. फिर उन्होंने कहा कि आप दोनों अब घर जा सकते हो. वापस आते हुए भी एंबुलेंस में पांच और लोग साथ में थे. 

वहां हाइजीन की खराब स्थिति के कारण पूरे चांस हैं कि अगर आपको कोरोना नहीं भी है आइसोलेशन वार्ड या एंबुलेंस में आपको कोरोना हो जाए. अगर आपको कोरोना नहीं भी है तो आप वहां से नहीं बच सकते हो. पहले एंबुलेंस ड्राइवर ने हमें कहा कि वो नोएडा सेक्टर 122 हमें छोड़ देगा. लेकिन हमें निठारी छोड़ दिया गया. हमसे कहा गया कि आप यहां पर वेट करो , मैं दूसरी सवारी को छोड़ने जा रहा हूं. 102 नंबर की गाड़ी आएगी वो आपको लेकर जाएगी.

वहां आधा घंटा इंतजार करने के बाद जब मैंने वापस कॉल की और पूछा कि कब आएगी गाड़ी किया तो उन्होंने कहा कि हमारी जिम्मेदारी यहीं तक की थी. आगे आप देखो. फिर हम वहां और खड़े रहे. लगभग आधा घंटा और बीता और बीता और जो एंबुलेंस का ड्राइवर हमें छोड़ कर गया था वो वापस लौटा. हमें वहीं खड़ा देख कर रुक गया. कहने लगा कि अरे बाबूजी मैं क्या करुं मैं तो खुद परेशान हूं चार दिन से खाना नहीं खाया है, हालत खराब है. मेरे सामने ही उसने वीड मारी और कहने लगा कि 12 से ऊपर हो रहे हैं आप काफी परेशान हो, मैं आपको छोड़ देता हूं.

एंबुलेंस ड्राइवर अपने दो-तीन साथियों के साथ एंबुलेंस में बैठा और फिर वो रात के 1 बजे मेरी सोसाएटी से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर ही वो मुझे छोड़ कर चला गया. यह कहानी बहुत कम करके मैंने बताई है कि क्या सिस्टम जमीन पर है और क्या मीडिया में दिखता है. जब आप ग्राउंड लेवल पर आते हो तो कोई रेस्पोंसिबल नहीं है आपकी हैल्थ के लिए, आपकी सिक्योरिटी के लिए, आपके कंसर्न के लिए और आपकी जान के लिए.

Friday, July 3, 2020

Sonia Gandhi Writes to PM Modi, demands OBC reservation under NEET quota



Dear Prime Minister,
I would like to bring to your attention, denial of reservation for OBC candidates under All-India Quota being filled through National Eligibility cum Entrance Test (NEET), in State/UT Medical education institutions.
Under the All India Quota, 15%, 7.5% and 10% seats are reserved for SC, ST and Economically Weaker Section (EWS) candidates respectively, in both Central and State/UT Medical education institutions. However, reservation for OBC candidates under All India Quota is restricted to Central Institutions. As per the data compiled by the All India Federation of Other Backward Classes, since 2017, OBC candidates lost over 11,000 seats, in All India Quota, due to non-implementation of OBC reservations in State/UT Medical education institutions.

The 93rd Constitutional Amendment envisages, special provisions for the advancement of any socially and educationally backward classes of citizens or for the Scheduled Castes or the Scheduled Tribes in admission to educational institutions including private educational institutions, whether aided or unaided by the State, other than the minority educational institutions.



Denial of reservations to OBCs in state medical institutions in All India Quota, being administered by GOI, violates the very objective of the 93rd Constitutional Amendment and is a barrier to access medical education for deserving OBC candidates.

In the interest of equity and social justice, I strongly urge the Union Government to extend reservation for OBC candidates in All India Quota of medical and dental seats, even in the State/UT Medical education institutions.

With kind regards.
​​​​​​​​​Yours sincerely,

Sonia Gandhi
July 3, 2020

अमेरिका में पत्रकारों को बेरोजगारी भत्ता, भारत में बस WhatsApp में वीडियो चाहिए, TV पर गुलामी



- रवीश कुमार 

अमरीका में 36,000 पत्रकारों की नौकरी चली गई है या बिना सैलरी के छुट्टी पर भेज दिए गए हैं या सैलरी कम हो गई है. कोविड-19 के कारण. इसके जवाब में प्रेस फ्रीडम डिफेंस फंड बनाया जा रहा है ताकि ऐसे पत्रकारों की मदद की जा सके. यह फंड मीडिया वेबसाइट दि इंटरसेप्ट चलाने वाली कंपनी ने ही बनाया है. इस फंड के सहारे पत्रकारों को 1500 डॉलर की सहायता दी जाएगी. एक या दो बार. इस फंड के पास अभी तक 1000 आवेदन आ गए हैं.


वैसे अमरीका ने जून के महीने में 100 अरब डॉलर का बेरोज़गारी भत्ता दिया है. अमरीका में यह सवाल उठ रहे हैं कि सरकार को बेरोज़गारों की संख्या को देखते हुए 142 अरब डॉलर खर्च करना चाहिए था. भारत का मिडिल क्लास अच्छा है. उसे किसी तरह का भत्ता नहीं चाहिए. बस व्हाट्स एप में मीम और वीडियो चाहिए. टीवी पर गुलामी. 

भारत में एडिटर्स गिल्ड, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को कम से कम सर्वे तो करना ही चाहिए कि कितने फ्री-लांस, पूर्णकालिक, रिटेनर, स्ट्रिंगर, अंशकालिक पत्रकारों की नौकरी गई है. सैलरी कटी है. उनकी क्या स्थिति है. इसमें टेक्निकल स्टाफ को भी शामिल किया जाना चाहिए. पत्रकारों के परिवार भी फीस और किराया नहीं दे पा रहे हैं. 

ख़ैर ये मुसीबत अन्य की भी है. प्राइवेट नौकरी करने वाले सभी इसका सामना कर रहे हैं. एक प्राइवेट शिक्षक ने लिखा है कि सरकार उनकी सुध नहीं ले रही. जैसे सरकार सबकी सुध ले रही है. उन्हीं की क्यों, नए और युवा वकीलों की भी कमाई बंद हो गई है. उनकी भी हालत बुरी है. कई छोटे-छोटे रोज़गार करने वालों की कमाई बंद हो गई है. छात्र कहते हैं कि किराया नहीं दे पा रहे हैं. 

इसका मतलब यह नहीं कि 80 करोड़ लोगों को अनाज देने की योजना का मज़ाक उड़ाए. मिडिल क्लास यही करता रहा. इन्हीं सब चीज़ों से उसके भीतर की संवेदनशीलता समाप्त कर दी गई है. जो बेहद ग़रीब हैं उन्हें अनाज ही तो मिल रहा है. जो सड़ जाता है. बल्कि और अधिक अनाज मिलना चाहिए. सिर्फ 5 किलो चावल और एक किलो चना से क्या होगा.

यह बात गलत है कि मिडिल क्लास को कुछ नहीं मिल रहा है. व्हाट्स ऐप मीम और गोदी मीडिया के डिबेट से उसका पूरा ख्याल रखा जा रहा है. उसके बच्चों की शिक्षा और नौकरियों पर बात बंद हो चुकी है. ताकि वे मीम का मीमपान कर सकें. उसके भीतर जितनी तरह की धार्मिक और ग़ैर धार्मिक कुंठाएं हैं, संकीर्णताएं हैं उन सबको खुराक दिया गया है.  जिससे वह राजनीतिक तरीके से मानसिक सुख प्राप्त करता रहा है. 


ख़ुद यह क्लास मीडिया और अन्य संस्थाओं के खत्म करने वाली भीड़ का साथ देता रहा, अब मीडिया खोज रहा है. उसे पता है कि मीडिया को खत्म किए जाने के वक्त यही ताली बजा रहा था.मिडिल क्लास में ज़रा भी खुद्दारी बची है तो उसे बिल्कुल मीडिया से अपनी व्यथा नहीं कहनी चाहिए. उसे सिर्फ मीम की मांग करनी चाहिए. कुछ नहीं तो नेहरू को मुसलमान बताने वाला मीम ही दिन बार तीन बार मिले तो इसे चैन आ जाए. 

खुद्दार मिडिल क्लास को पता होना चाहिए कि प्रधानमंत्री ने उसका आभार व्यक्त किया है. ईमानदार आयकर दाताओं का अभिनंदन किया है. ऐसा नहीं है कि आप नोटिस में नहीं हैं

Monday, June 29, 2020

लोकल के लिए वोकल बनो: देश की लोकल मोबाइल कंपनियों का क्या हुआ?



-गिरीश मालवीय
कल यह खबर खूब चर्चा में रही कि पीएम केयर्स में चीनी मोबाइल कंपनियों ने बढ़ चढ़कर चंदा दिया है इस बात से मुझे याद आया कि अपने देश की लोकल मोबाइल कंपनियों का क्या हुआ? जिन्हें शार्ट फार्म में MILK कहा जाता था यानी इन कंपनियों के नाम के पहले अक्षर : माइक्रोमैक्स, इंटेक्स, लावा और कार्बन. 'लोकल के लिए वोकल बनो' यह हमारे प्रधानमंत्री कह रहे हैं पर वे ये बताए कि माइक्रोमैक्स कंपनी जो  2015-16 में भारतीय मार्केट में इतना अच्छा परफार्मेंस दे रही थी आज वो कम्पनी कहा है ?

आज आपको चीनी मोबाइल कंपनी  Xiaomi-10 करोड़, Huawei- 7 करोड़, One Plus-1 करोड़, Oppo-1 करोड़  पीएम केयर्स में दे रही है तो उन्हें आपने कुछ एक्स्ट्रा हेल्प की होगी तभी तो दे रही है मोबाइल इंडस्ट्री के जानकार लोगो को पता है कि दरअसल देश मे दो बड़े चाइनीज ग्रुप ने भारत के लगभग पूरे स्मार्टफोन मार्केट को कब्जे में कर लिया 2019 में भारत के 72 फीसद स्मार्टफोन बाजार पर चीनी ब्रांड का दबदबा रहा। सालभर पहले इसका स्तर 60 फीसद था। इसमें से अकेले 37 फीसद बाजार पर बीबीके ग्रुप का कब्जा है। ओप्पो, वीवो, रीयलमी और वनप्लस ब्रांड की मूल कंपनी बीबीके ही है। इसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी श्याओमी अपने रेडमी और पोको ब्रांड के साथ 28 फीसद बाजार पर काबिज है।

कूलपैड पहले माइक्रो मैक्स को सपोर्ट करती थीं लेकिन अब वह खुद भारतीय मार्केट में उतर गई है साल 2017-18 तक भारतीय मोबाइल बाजार में घरेलू कंपनी माइक्रोमैक्स की अच्छी-खासी पकड़ थी। लोग माइक्रोमैक्स के फीचर से लेकर स्मार्टफोन तक खरीदते थे, लेकिन बाद में चाइनीज कंपनियों के दबदबे के बाद माइक्रोमैक्स बाहर हो गया , इंटेक्स, लावा और कार्बन भी मार्केट से आउट हो गयी, तब भी हमारे लोकल के लिए वोकल बनो कहने वाले प्रधानमंत्री ही गद्दी पर बैठे थे अब लगभग चारो बड़ी कम्पनिया स्मार्टफोन मार्केट से गायब हो गयी है इसका जिम्मेदार कौन हैं बताइये? और स्मार्टफोन तो छोड़िए फीचर फोन मार्केट से भी धीरे धीरे भारतीय कम्पनिया बाहर हो रही हैं। 


फीचर फोन बाजार में भी चीनी कंपनियां तेजी से अपनी स्थिति मजबूत कर रही हैं। जनवरी-मार्च 2019 में इन कंपनियों की फीचर फोन बाजार में हिस्सेदारी महज 17 फीसदी थी लेकिन इस साल की समान अवधि में यह बढ़कर 33 फीसदी पर जा पहुंची है। यह हालत कर दी है भारत के मोबाइल मार्केट की हैशटैग #vocalforlocal का अभियान चलाने वालों ने ! अब जिसको पीछे से असली सपोर्ट मिल रहा है वो तो पीएम केयर्स में चंदा देगा ही न !

Sunday, June 28, 2020

पहले EMI में राहत के नाम पर धोखा, अब महंगे पेट्रोल-डीजल की मार, कब तक चलेगा ये अत्याचार?



-धीरज फूलमती सिंह
भारत मे कोरोना संकट शुरू होते ही केद्र सरकार ने देश में लॉक डाउन कर दिया। न कोई बाहर जा सकता था, ना कोई बाहर से आ सकता था। व्यवसाय भी बंद कर दिये गये। इसी दरम्यान केद्र सरकार ने बडा दिल दिखाते हुए अगले तीन महीने की हाउसिंग लोन की किस्त में राहत की घोषणा कर दी। फिर लॉक डाउन दो की शुरुआत हुई तो सरकार ने यह सुविधा अगस्त 2020 तक के लिए बढा दी मतलब अगले 6 महीने के लिए। भारत का मध्यम वर्ग तो गदगद हो गया। मोदीजी की जय जय कार करने लगा।

मध्यम वर्ग को अब जाकर समझ आया है कि वो तो सिर्फ सांत्वना देने का ड्रामा था। दस लाख से ज्यादा हाउसिंग लोन लेने वालो को यह पैसे चक्रवृद्धी ब्याज के साथ लौटाने पडेंगे। आप को जानकर हैरानी होगी कि भारत मे कुछ हाउसिंग लोन में दस लाख से अधिक लोन लेने वालों का कुल प्रतिशत 97% है,मतलब की सिर्फ 3% को फौरी तौर पर राहत दी गई है, बाकी के 97% को मूर्ख बनाया गया है। मै भी सोचूं एक बनिये का दिल इतना बड़ा कैसे हो गया? अब सच्चाई धीरे- धीरे समझ में आ रही है। 

दूसरी तरफ आज पेट्रोल और डीजल के दाम चोरी-छुपे  बेतहाशा बढ़ रहे हैं। डीजल तो पेट्रोल से भी आगे निकल गया है। जो आजादी के बाद आज तक ऐसा नही हुआ था। आने वाले समय में हम अपने पोतों-पोतियो को इस चमत्कार और ज्यादती की कहानी सुनाया करेंगे। केद्र सरकार के समर्थक कह रहे हैं कि तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका नजर आ रही है तो ऐसे मे भविष्य में हमे अच्छे हथियारों की जरूरत होगी और उन्हे खरीदने के लिए जरूरी रकम पेट्रोल और डीजल के बढे हुए दामों से वसूल सकते हैं, लेकिन पेट्रोल और डीजल की कीमतों में तो राज्य सरकारों का भी हिस्सा होता है लेकिन राज्य सरकार देश के लिए हथियार नही खरीदती है, फिर यह बेतहाशा वृद्धि क्यों? वह भी तब जब आज क्रूड ऑयल बहुत सस्ता हो गया है और युद्ध काल में  सुरक्षित रहने के लिए हमारे पास अगले आठ महीने के लिए सरप्लस ऑइल है,फिर तब यह हाय तौबा क्यों मचाई जा रही है ? दाम बेमतलब के क्यो बढ़ रहे हैं?

युद्ध काल की स्थिति तो पाकिस्तान में भी बन रही है। चीन, जापान, ऑस्ट्रेलिया में भी बन रही है तो क्या पेट्रोल और डीजल के दाम वहा भी बढ रहे हैं? डीजल के दाम में बढोतरी तो सीधे-सीधे भारत के विशालकाय मध्यम वर्ग और निम्न आय वर्ग के घरेलू मासिक बजट को प्रभावित करेंगे फिर यह अत्याचार क्यों?



मुझे एक और बात कहनी थी कि कुछ दिनों से नून, तेल, मसाला लेकर हर भाजपा समर्थक कॉंग्रेस के पीछे पड गया है क्यो कि उनके आक़ा राहुल गांधी जी ने भारतीय सेना और सरकार के लिए गैर जिम्मेदाराना बयान देकर बवाल खडा कर दिया है। भारत का संपूर्ण विपक्ष जहा सरकार के साथ खडा है, ऐसे में राहुल गांधी जी विरोध करने के लिए अलग ही धुन बजा रहे हैं, इसे देश भक्ति तो कतई नही कहेंगे, एक अच्छे विपक्ष के कार्य का निर्वाह भी नहीं कर रहे हैं। यहा तक तो मैं सहमत हूँ लेकिन उनकी आवाज दबाने के लिए एक काट तैयार कर ली गई है कि मनमोहन सिंह जी के समय प्रधान मंत्री राहत कोष से राजीव गांधी फाउंडेशन को कुछ करोड रुपये ट्रांसफर हुए है। 

प्रधान मंत्री राहत कोष से राजीव गांधी फाउंडेशन को रुपये ट्रांसफर करना गलत है तो बाक़ायदा पुलिस केस दर्ज क्यो नही की जा रही है? कोर्ट की मदद क्यो नही ली जा रही है? सीबीआई से जांच क्यो नही करवाई जा रही है? किसी मुहूर्त का इंतजार क्यो किया जा रहा है? और प्रधान मंत्री राहत कोष से रूपये ट्रांसफर करना गलत नही है तो फिर यह शोर मचा कर जनता को भ्रमित करने का प्रयास क्यो किया जा रहा है? अगर गलत है तो कार्यवाही करो अन्यथा फिर चुप रहो। कम से कम कन्फयूजन की कोई बात तो न रहेगी? बदले की राजनीति तो मत करो!

Thursday, June 25, 2020

'मास्टरस्ट्रोक' वाले मोदीजी को मास्टरब्लास्टर सचिन तेंदुलकर से सीखना चाहिए !

- कुश वैष्णव

ये तुलना नहीं है। मुझे लगता है सचिन से मोदी जी को सीखना चाहिए। सचिन करोडों लोगों की भावनाओं के हिसाब से अपना खेल नहीं खेलते। वे अपना बेहतरीन खेलने की कोशिश करते हैं जिससे करोड़ो लोग उन्हें पसंद करते हैं। ख़राब दौर सचिन का भी रहा है। गलतियाँ उनसे भी होती  हैं लेकिन वे इसके लिए विरोधियों को दोष नहीं देते। मान लीजिए भारतीय टीम को जीतने के लिए 20 बॉल में 40 रन चाहिए और नौ खिलाड़ी आउट हो चुके हैं ऐसे में सचिन आउट हो जाते हैं। तो वो क्या कहेंगे? कि शोहेब अख़्तर तेज़ गेंद फेंक रहा है या ऑफ साइड में फील्डिंग सेट करके ऑफ में ही बॉल डाल रहा है या फिर ऑडियंस हूटिंग कर रही हैं।

मोदीजी की समस्या ये है कि जब भी वो आउट होते है बहाने बनाने लगते है। वामपंथी, विपक्ष पाकिस्तान, चीन, देशद्रोही एनजीओ जैसे राग अलापने लगते हैं। विरोधी तो विरोधियों वाला व्यवहार करेंगे ही, इसीलिए तो हमें मास्टर ब्लास्टर चाहिए। नोटबन्दी हो, अभिनंदन का पकड़ा जाना हो या कोरोना से निपटने में लापरवाही। IT सेल के माध्यम से हर बार दोषारोपण किया गया। नोटबन्दी पर विपक्ष को, अभिनंदन के पकड़े जाने पर खुद अभिनंदन की लापरवाही, कोरोना में जमात पर। 

सचिन क्या ऐसा कहते हैं कि ब्रेट ली जब 80 की स्पीड से गेंद फेकेंगे तभी मैं सेंचुरी बनाऊंगा? मुश्किल परिस्थितियों में ही तो लीडर की पहचान होती है। जब सबकुछ आपके पक्ष में हो तब तो कोई साधारण व्यक्ति भी अच्छा कर सकता है। मास्टर ब्लास्टर की क्या ज़रूरत? 

Saturday, June 20, 2020

'अगर आप वर्ग विशेष से नफरत नहीं करते तो भाजपा को पसंद करने की कोई और वजह नहीं'


- अंकित द्विवेदी

अगर आप किसी हिन्दू राष्ट्र के समर्थक नहीं है या आपके दिल में किसी वर्ग विशेष के लोगों के लिए नफरत नहीं है तो फिर ऐसी कोई वजह नहीं है जिसके लिए भारतीय जनता पार्टी को पसंद किया जाए। बीजेपी ने संसद में 2 सीट से मुख्य विपक्षी दल बनने के लिए बाबरी मस्जिद गिराई।जिसके बाद मुंबई सहित पूरे देश मे दंगे हुए। मुंबई का 1993 का बम ब्लास्ट भी मस्जिद गिराने की वजह से हुआ। इस मस्जिद को गिराने के बाद दुनिया के कई देशों में मंदिर भी गिराए गए। बांग्लादेश और पाकिस्तान में हज़ारों हिंदुओं को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। इस एक घटना से देश की छवि पूरी दुनिया में ख़राब हुई।

इस पार्टी को दुबारा सत्ता में आने के लिए मुज़फ़्फ़रनगर में नफरत की साजिश रचनी पड़ी। उस पश्चिम यूपी में हिंदू - मुसलमानों को अलग किया गया। जहां हज़ारों साल से हिंदुओं और मुसलमानों के रीति - रिवाज एक जैसे थे। शादियों में एक जैसी रस्में होती थी। यहां तक की जाट और गुज्जर नाम की हिंदू जातियां मुसलमानों में भी थी। जो गर्व से खुद को मुसलमान से पहले जाट या गुज्जर कहते रहे हैं।

अब कुछ लोग ये भी तर्क दे सकते है, “इनका भी तो धर्म परिवर्तन हुआ था। वो भी तो गलत था और बाबरी मस्जिद भी तो मंदिर तोड़कर बनाई गई थी” ये दोनों चीज़े गलत हुईं, लेकिन इनका जब जबरन धर्म परिवर्तन हुआ और जब तथाकथित राम मंदिर गिराया गया। तब ना कानून का शासन था और ना ही हम लोकतांत्रिक गणराज्य थे। इसलिए बीजेपी द्वारा बाबर और औरंगजेब के कुकर्मो का बदला जुम्मन मियां से लेना बिल्कुल गलत है।

आज जो बीजेपी के सबसे लोकप्रिय नेता और हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी हैं। उनको भी गुजरात में सत्ता बनाएं रखने के लिए गोधरा कांड रचना पड़ा था। वहां 58 हिंदू मारे गए ( ये भी बाबरी मस्जिद से जुड़ा मामला है क्योंकि ये 58 लोग अयोध्या से कारसेवा करके लौट रहे थे) उन 58 लोगों के शवों को गुजरात की सड़कों पर रखकर प्रदर्शन किया गया। जिसके बाद ही गुजरात का दंगा हुआ। इन 58 लोगों के शवों को क्या बिना तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की इजाज़त के बिना गुजरात के कई चौराहों पर रखकर प्रदर्शन किया गया? क्या उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि इससे दंगे भड़क सकते है? क्या तब गुजरात कैडर के किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने सीएम को ये नहीं बताया होगा कि इससे दंगे भड़क सकते है? क्या सीएम ने इतने बड़े निर्णय के लिए अपने प्रशासनिक अधिकारियों से सलाह नहीं लेना चाहिए था? अगर उनकी इज़ाजत के बिना शव चौराहों पर रखकर प्रदर्शन किया गया तो फिर ये मुख्यमंत्री की नाकामी नहीं है? यही वो घटना थी जिसने बीजेपी को अपने स्वर्णिम दौर में पहुंचा दिया।

अब अगर 6 सालों के शासन की बात करे तो मुझे नहीं लगता कि कुछ गिनाने की जरूरत है। नोटबंदी कि नाकामी आपको चारों तरफ दिख ही रही है। सीमा पर जवानों की सुविधाओं में कमी की खबर आपने पढ़ी ही होगी। जवानों की शहादत भी इन 6 सालों से लगातार खबर बनती रही है। अब देश की राजधानी में हिंसा के बाद मौतों का बढ़ता आंकड़ा भी बीजेपी की नाकामी चीख - चीख याद दिला रहा है। ऐसे में कोई वजह नहीं बचती जिसके कारण बीजेपी को पसंद किया जाए। (ये लेखक के निजी विचार हैं, उनकी फेसबुक वॉल से साभार प्रकाशित)

Thursday, June 18, 2020

करण जौहर के बारे में ये सब पढ़कर कहीं आपको मोदी जी की याद तो नहीं आ रही है?



- कुश वैष्णव

आज हम करण जौहर और मोदीजी पर बात करेंगे। पहले हम बात करते हैं करण जौहर की। एक समय पर करण जौहर आदित्य चोपड़ा के दोस्त के रूप में जाने जाते थे। ddlj फ़िल्म में एक छोटा सा रोल भी किया और वहीं पर शाहरुख ख़ान और काजोल से दोस्ती की और बाद में कुछ कुछ होता है जैसी फ़िल्म बनाकर बॉलीवुड में और ऊँचा पद प्राप्त किया। करण जौहर बहुत फैशनेबल इंसान है। उनके कपड़े डिज़ाइनर से सिल कर आते हैं। एक ही दिन में आप करण को बार बार कपड़े बदल कर आते हुए देख सकते हैं। उनके अलहदा और महँगे कपड़े हमेशा चर्चा का विषय रहते हैं।

करण जौहर को विदेशी लोकेशन बहुत पसंद है। वो हमेशा अपनी फिल्मों की शूटिंग विदेशों में ही करते हैं। इसलिए साल में कई कई दिन विदेशों में ही रहते हैं। विदेशों में उनकी फिल्में लोकप्रिय भी रहीं है। NRI उनकी फिल्मों को बहुत पसंद करते हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो उन्होंने विदेशों में भारत का नाम रोशन किया है। उनकी फिल्मों में महँगे महँगे सेट, बड़ी बड़ी स्टारकास्ट और बड़ी बड़ी बातें होती रहती है। इसी चकाचौंध को अपनी फिल्मों में दिखाकर वो दर्शकों को बेवक़ूफ़ बनाते है।

फ़िल्म में मनोरंजन के लिए करण जौहर धर्म और देशभक्ति का तड़का भी लगाते रहते हैं। जैसे कुछ कुछ होता है में रानी मुखर्जी से ओम जय जगदीश हरे गवाना या कभी खुशी कभी ग़म में काजोल से राष्ट्रगान गवाना। करण जौहर अक्षर acronym या वाक्यों के लघु रूप का प्रयोग अधिकतर करते हैं। जैसे कभी खुशी कभी ग़म को K3G कहना, कुछ कुछ होता है को KKHH या स्टूडेंट ऑफ द ईयर को SOTY कहना।

आजकल करण जौहर पर आरोप भी लग रहा है कि वो अपने दोस्तों के साथ मिलकर अपने विरोधियों का मज़ाक उड़ाते है। उन्हें बार बार नीचा दिखाकर इंडस्ट्री से बाहर करना चाहते हैं। वो इंडस्ट्री में आउटसाइडर्स मुक्त इंडस्ट्री का कोई अभियान भी चलाते है।


उन पर पिछले कुछ दिनों से एक गंभीर आरोप लगा है कि वो इंडस्ट्री में नेपोटिज़्म फैलाते है। भले ही वो अपनी परिवार के लोगों को अपनी फिल्मों में लॉन्च नहीं करते लेकिन अपनी हर फ़िल्म की डील वो सिर्फ़ अपने दोस्तों के साथ ही करते हैं। अपने दोस्तों को फ़ायदा पहुंचाने के लिए फिल्में बनाते हैं। उनके बच्चों को लॉन्च करवाने के लिए फिल्में बनाते हैं जिसकी वजह से इंडस्ट्री के बाहर के सक्षम लोगों को मौका नहीं मिल पाता।

मुझे जो उनकी सबसे अच्छी बात लगती है वो ये कि करियर के लिए उन्होंने कभी शादी नहीं की। और हाँ करण जौहर अपनी माँ से बहुत प्यार करते हैं। आप अक्सर सोशल मीडिया पर उनकी माँ के साथ वाली तस्वीरें देख सकते हैं। आज करण जौहर के बारे में इतना कुछ लिख दिया है। पोस्ट लम्बी हो गयी इसलिए मोदीजी के बारे में अगली बार बात करेंगे।