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Saturday, June 13, 2020

महामारी में बैंकों की ये कैसी मोहलत? EMI पर ब्याज वसूल रहे हैं तो राहत किस बात की?

-गिरीश मालवीय

EMI पर ब्याज माफी के सिलसिले में आज फिर हम जैसे लाखो करोड़ो मिडिल क्लास लोगो को सुप्रीम कोर्ट ने निराश किया है गौरतलब है कि पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि आर्थिक पहलू लोगों के स्वास्थ्य से बढ़कर नहीं है. ये सामान्य समय नहीं हैं. एक ओर ईएमआई पर मोहलत दी जा रही है, लेकिन ब्याज में कुछ भी नहीं. यह ज्यादा नुकसान वाली बात है. इसी पर सुनवाई थी 

दरअसल  सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा गया कि बैंक ईएमआई पर मोहलत देने के साथ- साथ ब्याज लगा रहे हैं जो कि गैर-कानूनी है. इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई और केंद्र से जवाब मांगा था.

पहली सुनवाई में आरबीआई ने कहा था कि लोगों को 6 महीने का ईएमआई अभी न देकर बाद में देने की छूट दी गई है, लेकिन इस अवधि का ब्याज भी नहीं लिया गया तो बैंकों को दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा.

ईएमआई पर ब्याज लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने  RBI से सवाल किया कि क्या लॉक डाउन के दौरान  ब्याज पर भी मोहलत दी जा सकती है? अदालत ने वित्त मंत्रालय और आरबीआई के अधिकारियों से तीन दिनों के भीतर संयुक्त बैठक कर ये तय करने को कहा है कि क्या 31 अगस्त तक ईएमआई पर दी गयी मोहलत के साथ ब्याज पर भी मोहलत दी जा सकती है?  मामले में अगली सुनवाई 17 जून को होनी है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह भी साफ किया कि वो ब्याज माफ करने के लिए नहीं टालने की बात कर रहा है. रहने दीजिए मीलॉर्ड ! आपसे न हो पाएगा। 

फरिश्ता : 80 साल के जगदीश लाल आहूजा 17 सालों से गरीबों को मुफ्त में खाना खिला रहे हैं

- शशांक गुप्ता

आज जब लोग धर्म के नाम पर दूसरों की जान लेने में तुले हैं उस माहौल में एक इंसान एक के बाद एक अपनी करोड़ों की सात प्रापर्टी  सिर्फ इसलिए बेच दिया क्योंकि कोई भी गरीब भूखे पेट न सोए। उनका मकसद सिर्फ है भूखे को खाना खिलाना।  हम बात कर रहे हैं चंडीगढ़ के लंगर बाबा के नाम से मशहूर 80 साल के जगदीश लाल आहूजा की।  यह फरिश्ता चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल के बाहर मरीजों ,उनके तीमारदारों और गरीबों को पिछले 17 सालों से मुफ्त में खाना खिला रहे हैं।

जगदीश लाल आहूजा का जन्म आज से 80 साल पहले पेशावर में हुआ था, जो आज पाकिस्तान में है। 1947 में देश के बंटवारे के चलते जब वह पटियाला आए उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 12 साल थी। जिंदा रहने के लिए कुछ करना जरूरी था, तो उन्होंने उस छोटी सी उम्र में टॉफियां बेचकर अपना गुजर-बशर किया। 1956 में जब वह चंडीगढ़ आए, तो उनके जेब में सिर्फ कुछ ही रुपये थे। यहां उनका केले का कारोबार खूब फला-फूला और पैसे की कोई कमी न रही। 

जगदीश आहूजा ने जबसे लंगर शुरू किया तबसे उनके सामने कई बार आर्थिक परेशानियां आईं, लेकिन वे कभी पीछे नहीं हटे और अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया , लंगर नहीं रूका। लंगर चलता रहे, इसके लिए उन्होंने मेहनत से जुटाई अपनी संपत्तियों को एक-एक कर बेच दिया।आज इस 'लंगर बाबा' की वजह से रोजाना लगभग 2 हजार लोग अपना पेट भरते हैं। जगदीश ने कसम खाई है कि जबतक वह जिंदा रहेंगे, तबतक उनका लंगर चलता रहेगा और भूखों का पेट भरता रहेगा। वह सिर्फ लंगर ही नहीं चलाते, बल्कि समय-समय पर गरीबों में कंबल, स्वेटर, जूते और मोजे भी बांटते रहते हैं। 

आपकी जिंदगी कड़वाहट से भर गई है ,आप धर्म के नाम पर दूसरों की जान लेने लगे हैं लेकिन इसी दुनिया में कहीं जगदीश लाल आहूजा जैसा इंसान भी  हैं जो बिना किसी का धर्म और जाति पूछे उनका पेट भर रहा है। मानवता के इस नेक बन्दे को मेरा प्रणाम।

देश में कोरोना को लेकर उठने वाले हर सवाल को खारिज करने की इतनी जल्दबाजी क्यों है?

-गिरीश मालवीय

आखिर ऐसा क्यो होता है कि कोविड 19 पर उठते हुए हर प्रश्न को तुंरत खारिज कर दिया जाता है? क्या यह आपको आश्चर्य जनक नही लगता है कि दुनिया मे जैसे ही कोरोना वायरस का प्रसार शुरू हुआ कोविड-19 इंडिया डॉट ओआरजी जैसी वेबसाइट हर देश मे खड़ी हो गयी और ICMR जैसी सरकारी संस्थाओं से उनको डायरेक्ट एक्सेस मिल गया?  हर कोविड हस्पताल की हर जिले की, हर राज्य की यानी क्षेत्रवार इतनी स्पेसिफिक रिपोर्ट दिए जाने का ढांचा कुछ ही दिनों में खड़ा कर दिया गया ओर सेंट्रलाइज्ड स्तर पर इतने शानदार ग्राफिक के साथ यह सभी को उपलब्ध हो गया ? और सब ऐसे ही हो गया ? यकायक?

यानी कि आप देखिए कि किसी बड़े देश मे कोई दुर्घटना हो जाती है तो केजुअल्टी के संबंध में स्थानीय अखबार कुछ बताता है वहाँ के अधिकारी की रिपोर्ट कुछ अलग होती है सरकार कुछ अलग डाटा बताती है लेकिन कोविड 19 के मामले में पूरी दुनिया मे केवल एक सरीखा डाटा चल रहा है वो भी  बिल्कुल स्पेसिफिक ! ठीक है, ऐसा होता है कि थोड़ी घट बढ़ हो जाती है लेकिन अगले दिन सब मिलान हो जाता है। कम से कम भारत जैसे देश मे यह सब होना बहुत ही आश्चर्य जनक है।

मुझे याद है कि जब मैंने पहली कोविड-19 इंडिया डॉट ओआरजी जैसी साइट देखी थी तो मैं बिल्कुल हैरान रह गया था, ऐसा डाटा विश्लेषण ! इतनी डिटेलिंग ! ओर ऐसा प्रिपरेशन! ओर वो भी इतनी जल्दी! यानी कि जब देश मे कुछ सौ मामले ही आए थे मौतें भी बहुत कम थी तब इस लेवल की वेबसाइट का होना मेरे लिए विस्मयकारी घटना थी

ओर सबसे बड़ी बात तो यह कि ऐसा दुनिया के लगभग सभी  कोरोना प्रभावित देशो में एकसाथ ? प्रतिदिन की रिपोर्ट का मिलना रीयल टाइम में ! खासकर सिर्फ उन देशों का ही डेटा जहाँ इंटरनेट की डाटा की अच्छी खासी उपलब्धता हो? कई अफ्रीकन कंट्रीज के तो आज भी डाटा नहीं है

ओर सबसे मजे की बात तो यह कि आप इस पर सवाल खड़े करो तो लोग आपको अफवाह फैलाने वाला ? कांस्पिरेसी थ्योरिस्ट ? जैसे तमगे से नवाज देते हैं !

लगता है कि जैसे कुछ सदियों पहले लोग धर्म से आतंकित थे वैसे ही आज लोग विज्ञान से आतंकित हो गए हैं आधुनिक युग मे धर्म पर सवाल उठाए गए, रीति रिवाजों पर ,मान्यताओं पर भी उठाए गए और अब समय आ गया है कि सवाल विज्ञान पर भी उठाए जाए और विज्ञान उन सवालों का जवाब देने में सक्षम है वो जवाब देगा भी पर आप कम से कम सवाल तो करे !

क्या ऐसा संभव नही है कि पुराने जमाने मे जो लोग धर्म के नाम आपकी हमारी जुबानों को बन्द कर देना चाहते थे वही लोग आज विज्ञान के नाम पर हमें खामोश कर देना चाहते हों, यानी वही ! मानव जीवन के हर पहलू पर नियंत्रण की चाह रखने वाले बेहद ताकतवर लोग!

Friday, June 12, 2020

कोरोना काल और लॉकडाउन के बीच बिहार के दरभंगा में सामने आई एक अनोखी लव स्टोरी

बिहार के दरभंगा से लॉकडाउन की सबसे प्यारी प्रेम कहानी सामने आयी है। सीता और नितीश दोनों ही दिव्यांग हैं और ट्राइसाइकिल से ही चल पाते हैं। कुशेश्वरस्थान की सीता अपनी बहन के ससुराल मिलने आयी हुई थी, जिस दिन उसको वापस जाना था उसी दिन लॉकडाउन हो गया। फिर उसे वहीँ रुकना पड़ गया।


नीतीश कुछ दिन पहले ही अपने मामा के घर आया था मिलने, वो भी कुछ दिन के लिए पता नहीं क्यों वहीँ रुक गया। सीता की बहन का घर और नितीश के मामा का घर थोड़ी ही दूरी पर था। लेकिन लॉकडाउन से पहले गली में इतनी धूल उड़ती थी की एक से दूसरे घर देखने पर आँखे थोड़ी थोड़ी धूमिल हो जाया करती थी। पर अब नहीं होती, अब दूर-दूर तक सब साफ़ दिखता है !

सीता और नीतीश दोनों शाम को अपने अपने घरों के बाहर विटामिन डी इन्सफिसिएन्सी को दूर करने के लिए धूप सेंकते थे। पहली कुछ मुलाकातों में तो दोनों की कोई बोलचाल नहीं हुई, क्यूंकि अभी भी हवा में थोड़ा बहुत धूल और धुंआ था। लेकिन फिर धीरे धीरे दोनों में रामरमी शुरू हो गयी। दोनों दूर से ही धूप सेंकते वक्त सूर्य और चन्द्रमा के दर्शन कर लिया करते थे। लेकिन किसी की हिम्मत नहीं हुई कभी नमस्ते से आगे बात करने की।

नितीश के मामा की बेटी ने एक दिन छत से दोनों को दूर दूर से सूर्य और चन्द्रमा को दर्शन करते हुए और धूप सेंकते हुए देख लिया, मामा की बेटी ने पूछा की कैसी लगी, तो नितीश ने कहा ऐसी कोई बात नहीं है। लेकिन मामा की बेटी को लग गया था की शाम की धूप में प्यार की छाया पड़ चुकी है, तो उसने सीता की बहन से जाकर बात की। सीता की बहन ने भी छत से देखा शाम की धूप को। सीता की बहन ने सीता से पूछा तो सीता ने भी कहा की नहीं ऐसा कुछ नहीं है, बस दूर से ही राम राम कर देते हैं, कैजुअल रामरमी है। लेकिन मामा की बेटी और सीता की बहन ने अब ठान ली थी की इस शाम की सुबह करनी ही करनी है। दोनों ने अपने अपने घरवालों को बता दिया। जिन्होंने सीता और नितीश के घरवालों को बता दिया। दोनों के ही घरवालों ने हामी भर दी की अगर दोनों शादी के लिए मानते हैं तो करवा दो शादी।

मामा की बेटी और सीता की बहन ने नितीश और सीता से कहा की उन्होंने उनके पीछे से ही घरवालों से हामी ले ली है। तो दोनों ने कहा की ऐसी कोई बात नहीं है दोनों के बीच। लेकिन उन्होंने फिर भी दोनों की मीटिंग करवाई। मीटिंग में दोनों ही एक दूसरे से सहज लगे और दोनों ने शादी के लिए हाँ भर दी। अगले ही दिन दोनों की शादी एक मंदिर में करवा दी गयी।