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दिए जलाओ, नगाड़े बजाओ, विकास को न्याय मिल गया, न्यू इंडिया में आपका स्वागत है!



- मनीष सिंह
इंस्टंट न्याय.... न कोर्ट, न पेशी, न जज, न जल्लाद, ये एनकाउंटर न्याय है बबुआ। भारत अब वो भारत नही जो टीवी पर गोलियां बरसाते हुए पाकिस्तानी को भी भारतीय न्यायिक प्रक्रिया से गुजारता था। अब नुक्कड़ पर खड़ा पुलिसवाला शहंशाह है- जो रिश्ते में तो आपका बाप लगता है। 

बापजी रिपब्लिक में आपका स्वागत है। वर्दी बदल दी जानी चाहिए, खाकी और खादी का अंतर भी। अब इनको चाहिए काली पोशाक, एक हाथ मे रिवाल्वर दूसरे में फांसी की रस्सी। पीछे साउंड ट्रेक चले- "अंधेरी रातों में, सुनसान राहों पर, हर जुल्म मिटाने को..."

यह अंधेरी रात ही है। यह अंधेरा पसन्द किया गया था, चाहा गया था। विकास के गुजरात मॉडल की तरह, न्याय के इस मॉडल को सोहराबुद्दीन मॉडल का नाम मिलना चाहिए। यह मजबूत सरकार है। हमने सोचा था कि मजबूती दिल्ली में रहेगी, हम दूर अपने शहर गांव में आराम से रहेंगे। ऐसा नही होता, सरकार हमेशा आपके दरवाजे से थोड़ी दूर ही होती है। 

उसकी 56 की छाती पर बुलेटप्रूफ जैकेट होती है, आपकी नही। आपकी मजबूती की तमन्ना गलवान में पूरी नही हो पाती, तो क्या हुआ। यह भोपाल हैदराबाद और केरल में तो पूरी हो रही है। आपके मोहल्ले में भी होगी, आराम से बैठिए, जब तक गोली आपके घर मे न घुसे। अभी थोड़ा वक्त है, तब तक दिए जलाए जा सकते हैं, थालियां और नगाड़े बजाए जा सकते हैं। 

आप पूछ सकते हैं कि नया क्या है। क्या 70 साल में एनकाउंटर नही हुए? जी हां, बिल्कुल हुए। नयापन बेशर्मी का है। किस्सों का है, उस कुटिल मुस्कान का है जो बेशर्म झूठ बोलते वक्त मूंछो के नीचे फैल आती है। आगे स्क्रिप्ट वही है, ज्यूडिशियल इंक्वायरी, और फिर कहानी का वेलिडेशन। सब मिले हुए हैं जी। 

मुझे लगता है कि कुछ तो बदलाव होना चाहिए। हर थाने और चौकी में एक नई पोस्ट क्रिएट होनी चाहिए। नही एनकाउंटर स्पेशलिस्ट नही ..  वो तो हर सशस्त्र पुलिसवाला कभी भी बन सकता है अगर सैय्या कोतवाल हो और सामने कांपता हुआ आरोपी। हर थाने चौकी में एक "एनकाउंटर  स्क्रिप्ट राइटर" की जरूरत है। जो एनकाउंटरों के लिए एक कन्विसिंग कहानी लिख सके। 

असल मे जजो को इस काम मे प्रतिनियुक्त किया जा सकता है। क्योंकि न्यायालयों की जरूरत तो अब है नही। ये कहानियां आपके कोर्ट में आने पर आप स्वीकार कर सकते है, तो बेहतर है थाने में बैठकर लिख भी दिया करें। 

मेरी मांग और सुझाव पर गहराई से सोचिये। आखिर आपके भैया, पापा, बेटे की लाश जब घर में आये, तो साथ आयी उसके एनकाउंटर की कहानी में जरा विश्वसनीयता भी होनी चाहिए.. 

तो बताइये बहनों और उनके भाइयो। 
होनी चईये कि नई होनी चईये ??

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