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कोरोना काल: 40 साल से आप ऐसी ही व्यवस्था बनाने के लिए बावले हुए जा रहे थे न?

- मुकेश असीम

मध्यम वर्ग की शिकायत है अस्पताल में बेड नहीं मिल रहा, चक्कर लगाते मरीज मर जा रहा है, देखने को डॉक्टर नहीं, टेस्ट तक नहीं हो रहा ... एम्स वगैरह तो वीवीआईपी के लिए रिजर्व ... पर अंडर सेक्रेटरी की गिनती उसमें नहीं, अपने पति को बेड न दिलवा पाई ..... टेस्ट की लाइन में भी केजरीवाल जैसा आकर आगे कूद जाता है .... उसकी रिपोर्ट भी 4-6 घंटे में हाजिर, औरों की मरने के बाद भी आएगी कि नहीं भरोसा नहीं ..... बीमा कराया था वो भी बेकार ... 10 लाख बीमा .... बिल 16 लाख आया ....  फिर पहले 5 लाख पेशगी दो तब बेड मिलेगा .... वो भी गारंटी नहीं सिंधिया जैसा धनपशु आ गया तो उसे दे देंगे

स्कूल ऑनलाइन का स्वाँग कर रहा है, बंद है पर फीस फिर भी बढ़ा दी है....ऊपर से स्कूल के लोगो वाला मास्क चाहिये, हाँ भई, ऑनलाइन क्लास में भी स्कूल से 400 रु का खरीदा मास्क पहना कर बिठाओ बच्चे को... कोई हद है लूट की भी 

आपको तकलीफ है, इंसान के नाते मुझे हमदर्दी है, पर पिछले 40 साल से आप ऐसी ही व्यवस्था बनाने के लिए बावले हुए जा रहे थे न? सबके लिए समान सार्वजनिक शिक्षा-स्वास्थ्य का बेहतर इंतजाम ... नहीं नहीं, उससे टैक्सपेयर का पैसा बरबाद होता है आलसी कामचोर गरीबों मजदूरों पर, जो खरीद सकते हैं उनके लिए एक्सेलेंस चाहिये, जो पैसा देता है उसे सिर्फ सर्विस नहीं कस्टमर डिलाइट मिलना चाहिये न! बाकी तो सब कीड़े मकोड़े कॉकरोच हैं, भगाओ इनको, हमारा स्टैंडर्ड डाउन होता है इनसे ... प्राइवेट में 4-6 गुना पइसा लगेगा तो क्या साईं, पर जेंटरी अच्छी वाली होना माँगता है अपुन को!

राजीव गाँधी से नरिंदर मोदी तक सब आपके हीरो से शुरू कर भगवान इसीलिए बने क्योंकि वे आपको अच्छी जेंटरी वाला एक्सक्लुजिव सेंटर ऑफ एक्सेलेंस देने का ख्वाब दिखा रहे थे....उसके लिए कुछ सिक्खों को मारना हो तो क्या, कुछ कश्मीरियों का एनकाउंटर ही करना है ना, करो ... इन मद्रासियों को सबक सिखाना है बिल्कुल ठीक....और ये चिंकी, मारो इनको, हैं ही इस लायक.... बंगलादेशी मुसलमान घुस आये हैं देश में... हमारा सेंटर ऑफ एक्सेलेंस बरबाद कर देंगे, मारो भगाओ सबको, ये तो हमारे पुराने दुश्मन हैं.... पर ये तो 6 लाख ही मिले एनआरसी में, कोई बात नहीं, एक को भी नहीं छोड़ना, न मिले तो यहाँ वाले को ही बता दो घुसपैठिया....50 हजार करोड़ खर्च होगा एनपीआर पर, कोई हरज नहीं, सबको साफ कर दो.... और ये चमार-भंगी.. ये भी बहुत सिर उठाने लगे हैं, इनके बच्चों को भी स्कूल जाना है अब, नौकरी भी चाहिये दफ्तर में कुर्सी-मेज वाली... इन्हें भी सबक सिखाओ, मूँछ रखेंगे ये भी, घोड़ी पर बैठना है, करो ठीक इनको भी.......

तो मितरों, आपकी शिकायत कतई जायज नहीं, आपको बराबरी, इंसानियत और इंसाफ ही तो नहीं चाहिये था। जो आपने चाहा था, हो तो ठीक वही रहा है पूरे नियमसम्मत ढंग से! बस ओला-उबर की तरह सर्ज प्राइसिंग होने से कीमत आपकी जेब से ज्यादा हो गई है और आप भी कीड़े-मकोड़े कॉकरोच वाली श्रेणी में डाल दिये गये हैं! इसमें अधर्म की तो कोई बात नहीं, है तो सब शास्त्र सम्मत ही न.... अरे वही, पूंजीवाद में सब बिकाऊ माल होने और कीमत चुकाने पर ही मिलने वाला शास्त्र.... भूल गए क्या, आपने ही तो लिखा था, सारी भाषाओं में अनुवाद भी किया था... अरे, मुफ्त में नहीं, पेमेंट तो मिला था न आपको, कैशलेस डिजिटल पेटीएम से? उसी से तो आप बड़े वाले मॉल में गये थे पॉपकॉर्न के साथ सिनेमा देखने, पीत्ज़ा भी तो खाया था थिन क्रस्ट पर डबल चीज वाला! खैर, भगवान जो भी करते हैं, सब भले के लिए ही, उनकी लीला को कौन समझ सकता है, भक्त को चाहिये सब्र रखे!

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