- सत्येंद्र सत्यार्थी
पहला फेस :- इस फिल्म में बिल्कुल समझ नहीं आता कि अजय और पूजा कौन से डिग्री कॉलेज में पढ़ते हैं जहां उंडर ग्रेजुएशन के लौंडे लौंडिया इतने मैच्योर टाइप दिखते की चरस गांजा बेचते, और कॉलेज से निकलते ही शादी कर बच्चा जन लेते क्यों कि सामान्य स्नातक किसी भी ठीक स्टूडेंट की 20-21 साल में पूरी हो जाती । कास्ट सिस्टम जैसी चीज आड़े ही नहीं आती पता नहीं यह कॉलेज भारत में होता या सूर्य पर ।
फूल और कांटे नामक फिल्म देख ली। मुझे इस फिल्म को देखने में 4 दिन लगे, हालाकि नल्ला हू और बरसात का मजा ले रहा पर फिर भी भयानक बारिश में भी चार दिन लग गया। यह फिल्म रिलीज़ हुई थी नवंबर 1991 में। फिल्म की कहानी को लिखा था इकबाल दुर्रानी ने और डायरेक्ट किया था कुकु कोहली ने। नेपोटाइज्म से फिल्मों में घुसे अजय देवगन की यह पहली फिल्म थी। यह फिल्म ने अपनी लागत से 4 गुना पैसा कमाया था। यह तो हो गई मोटी बात अब फिल्म की बात करते हैं।
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उनके कॉलेज का एक बात और समझ नहीं आया कि आखिर कौन से प्रोफेसर ऐसे होते जो लड़के लड़कियों की सेटिंग करवाते, क्या भारत में ऐसा कोई कॉलेज है ? मेरी जानकारी के तो नहीं है । इस फिल्म में दिखाया गया कॉलेज बिल्कुल जो जीता वही सिकंदर के स्कूल या कॉलेज (आज तक समझ नहीं आया उसने स्कूल होता है या कॉलेज) की तरह ही है ।
दूसरा फेज:- इस फिल्म कॉलेज के अंदर जो छिछोरा पंती दिखाई गई है एक ज़ीरो कौड़ी कि है मतलब इतना वाहियात और जाहिलों टाइप का कैसे दिखाया जा सकता, दारूबाज, सुत्ता बाज, फेमिनाजिया आखिर इस फिल्म पर केस क्यों भी करती, इसमें लड़की को उपभोग की वस्तु की तरह दिखाया गया है और लड़की की तरफ लड़के का अप्रोच क्रिमिनल एक्ट में गिना जाता जैसे लड़की को बार बार फ्लाइंग किस देना, हॉस्टल में घुस उसके हर दीवार पर नाम के साथ आई लव यू लिखना इत्यादि, मुझे लगता है नब्बे में आयी ये फिल्म भारत के अशिक्षित समाज में अनेक अपराधों के लिए जिम्मेदार बनी होगी क्योंकि इसमें इस तरह का सीन डाला गया था जो हज़म नहीं होता। इस फिल्म में नारी को लेकर एक गलत चीज और दिखाई गई है बोली गई है वो मुझे समझ नहीं आती आखिर पुरुषों के पास ऐसा क्या होता जो महिलाएं नहीं देख सकती, इस फिल्म के एक सीन में ऐसा जोर देकर बोला गया है।
तीसरा फेज :- फिल्म में जो अपराध की दुनिया से जुड़े लोग हैं उनमें नागेश्वर, शंकरा, धनराज और अजय प्रमुख हैं, आप ने आज तक इस तरह के अपराधी नहीं देखे होंगे जो हमेशा टाई कोर्ट पैंट के साथ रहते एकदम वेल ड्रेस्ड, और उनके ड्रेसेस का रंग जूता सब एक सा होता है , इसके अलावा दो और अपराधी हैं एक शंकरा और एक नेता पर दोनों भिखारी टाइप दिखाए गए हैं। जबकि नागेश्वर को पानी पिला देते हैं मार मार कर। नागेश्वर को अंडर टेकर टाइप कर के दिखाने की नाकाम कोशिश की गई थी।
चौथा फेज:- अजय और नागेश्वर का पिता पुत्र बकचोड़ी, अजय हर जगह नागेश्वर का पीछा करता है ऐसा लगता है। नागेश्वर अलग ही टाइप का बकैत होता है अपने ही जाल में फस कर पिला जाता है। अजय भी एक तरह से लालची है अपने बाप की संपति का आखिर मालिक बन ही जाता है और सबसे ईमानदार अपराधी धनराज का खून कर देता है।
पांचवा फेज:- दो महीने का छोटा बच्चा जिसका नाम अजय पूजा मिलाकर गोपाल रखते हैं उसको अलग अलग सीन में अलग अलग दिखाया गया, एक सीन में उसके सर पर बाल दिखाया गया है आखिर मुझे कोई अंडा मार के बताए दो महीने के बच्चे के सर कर बाल होता क्या? वो दो महीने के बच्चा अपना नाम भी जनता है तभी तो नागेश्वर आखिरी में गोपाल गोपाल चिल्लाता हुआ जाता है मिल के अंदर। एक बाकैती और नहीं समझ आई कि आखिर इतने सभ्य अपराधी कैसे हो सकते जो दो महीने के बच्चे को हमेशा वेल मेंटेन वैसे ही रखते जैसे वो वेल ड्रेस्ड रहते । उसका हाग्ना मूतना कौन साफ करता है? यह फिल्म देखने के बाद से सोच कर मुंडी चकरा रहा है ।
छठवां और आखिरी फेज:- अजय पता कौन सी पढ़ाई करता है जो उसको बेस्ट स्टूडेंट का अवॉर्ड मिलता, अजय एक बेहतरीन फील्डर है जो लंबे लंबे डाइव मार कैच ले सकता है। इसके अलावा अजय एक बहुत ही शानदार शार्प शूटर है पिस्टल से को एक ही गोली में दौड़ती उड़ती भागती तैरती वस्तु को निशाना बना सकता है। इसके अलावा अजय एक जबर एथलीट है, लेकिन यह सब वो सीखा किधर यह कुछ समझ नहीं आता है !
सारांश:- अगर आज इसी फिल्में बने तो पर्दो में आग लगा देनी चाहिए। यकीनन भारत का अशिक्षित समाज को फिल्मों को देखने की तमिज होती तो भारत में बहुत से ऑस्कर आ रहे होते। ऐसी ही फिल्में देख पहले लौंडे लौंडिया घरों से भागते थे।
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