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जैसे भारत में कुछ लोग 'हिंदुत्व' बचाने आए हैं, वैसे ही पाकिस्तान में जिया-उल-हक़ इस्लाम बचाने आए थे !



- मनीष सिंह

नेताओं को आम खाने का शौक होता है। काटकर, चूसकर, छीलकर.. आम और अवाम को खाने वाले नेताओं ने हमारे बीच काफी गहरी लकीरें छोड़ी हैं। वो लकीरें ऐसी खाई में तब्दील हुई की आम आदमी उसी में धंसकर रह गया। जिया-उल-हक ऐसे ही "लकीर" के "फकीर" आम पसन्द इंसान थे।

पाकिस्तान पर सबसे लम्बे समय तक निष्कंटक राज करने वाले मिलिट्री रूलर जिया के निशान, पाकिस्तान के पहले मिलट्री रूलर अय्यूब खान का बिल्कुल उलटे है। जो अय्यूब ने बनाया, वो जिया खत्म करके चले गए।

खैबर पख्तूनवाह इलाके में पैदा हुए अय्यूब ब्रिटिश आर्मी के एक फौजी के घर पैदा हुए थे। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ने के बाद फ़ौज में गए। उनके सीनियर्स ने टैलेंट देखा और भेज दिया सैंडहर्स्ट .. ब्रिटेन की ये अकादमी दुनियाभर की मिलिट्री सर्विस का कैंब्रिज है। लौटकर भारत की ब्रिटिश फ़ौज में ऊंचे ओहदों पर रहे। पाकिस्तान बनने पर पाकी फ़ौज ऑप्ट की। वहां के टॉप जनरल हुए।

जिन्ना के मरने के बाद लियाकत अली होल सोल थे। अपनी सरकार में अयूब को डिफेंस मिनिस्टर बनाया। मगर लियाकत की हत्या के बाद पाक में लीडरशीप का अकाल हुआ। 1957 आते आते अयूब ने सरकार का तख्ता पलटा, और खुदमुख्तार हो गए। पाकिस्तान में विकास का दशक शुरू हुआ। कोल्ड वार में अयूब ने अमरीका ग्रुप को जॉइन किया। बदले में ढेरों पैसे, हथियार, प्रोजेक्ट्स हथियाये। खूब सड़कें, पोर्ट, स्कूल, यूनिवर्सिटीज, डेम, नहरें बनी। पाकिस्तान में आजाद, कॉस्मोपॉलिटन सोसायटी कभी बनी, तो वो अयूब के राज में थी।

1965 में भारत से अनिर्णित युद्ध, ईस्ट बंगाल की खराब हालत, फातिमा जिन्ना से प्रेजिडेंशियल इलेक्शन ठगी से जीतना आदि ऐसे मामले थे, जिसके कारण उन्हें अपने चमचे जनरल याह्या को सत्ता सौपनी पड़ी। 71 हारकर वो भी खेत रहे, जुल्फी भाई का राज आया।

जुल्फिकार भुट्टो एक बार मुलतान गए। वहां उनका सूट मिसफ़िट हो रहा था। वहां के एक बड़े फौजी अफसर ने उनका सूट खुद ठीक करवाया। उनको टैंक में घुमाने ले गया, और तो और तोप भी चलवायी। भुटटो खुश... साल भर के भीतर वो अफसर, सात सीनियर जनरलों को क्रॉस करके पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष बन गया। जुल्फी अपने सेनाध्यक्ष जनरल जिया उल हक की वफादारी और मोहब्बत के कायल थे। मोहब्बत इतनी परवान चढ़ी की दो साल के भीतर जुल्फिकार कब्र में और जिया उनकी कुर्सी पर थे।

एक पंजाबी मिलिट्री क्लर्क कम मौलवी के बेटे जिया ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए करके आर्मी जॉइन की थी। धर्म के इतने पक्के की अंग्रेज अफसरों से अपने धार्मिक सांस्कृतिक अधिकारों के लिए नाफरमानी कर बैठे थे। पार्टीशन के बाद पाक आर्मी ऑप्ट की, और अब देश के होल सोल थे।

जिन्ना सेकुलर व्यक्ति थे (आडवाणी गलत नही थे). हिन्दू मुसलमान वाली बक बक केवल सत्ता पाने तक था। पहली स्पीच में उन्होंने सेकुलर देश की कल्पना की थी। "हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई, पाकिस्तान में मस्त रहो भाई..." उन्होंने "रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान" बनाया था। उनके मरने के कोई दस साल बाद पाकिस्तान का ऑफिशियल नाम "इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान" हुआ. फिर शुरू हुआ किसी को कम मुसलमान, कम देशभक्त, कम अक्लमंद बताने का दौर। सुन्नी टॉप पे, शिया दब के, अहमदिया तो नॉन मुस्लिम ही करार दे दिए गए। लेकिन धर्म पे खतरा खत्म होता कहाँ है। सो वक्त के साथ जब जिया आये, तो इस्लाम बचाने का एजेंडा टॉप पर रखा।

शरिया कानून लागू किया। ईशनिंदा में मौत की सजा रखी.. यानी मुल्ले आपको किसी भी बात पर ब्लासफेमी बताकर मरवा सकते थे। हुदूद आर्डिनेंस लाये...हुदूद, याने रेस्ट्रिकशन, याने गैर इस्लामिक आचरण पर सजा। कोड़ा वोड़ा, पत्थर वत्थर सब लागू। फिर प्रेस सेंसरशिप लागू की। अखण्ड पाकिस्तान के सपने के साथ, मुजाहिदीन को दिल खोलकर सपोर्ट किया। मदरसे खोले, जहां से आगे चल के तालिबान निकले। इस्लाम के लिए देश के यूथ को आईडियोलॉजी, और हथियार से लैस कर आतंक को औजार बनाने की पॉलिसी शुरू की।

आईएसआई की ताकत बेतरह बढ़ी। जो हुजूर कहें, वही संसद पहुंचता। बाबे और मुल्ले झूमकर संसद में पहुंचाए गये। हर मसला इस्लाम और शरिया के ब-नजरिये देखा जाने लगा। मने जल्द ही इस्लाम बचने ही वाला था.....कि तभी आमो में विस्फोट हो गया। मने हुआ ये की एक फौजी अभ्यास देखने बहावलपुर गए जिया को, गिफ्ट में आमो की टोकरी मिली। किसने दी, कोई नही जानता। उनका जहाज उड़ा, औऱ फटकर क्रेश हुआ। जिया का जीवन 17 अगस्त 1988 को समाप्त हुआ। अब आप जान गए कि अगस्त में नेता मरने की परिपाटी ओल्ड है।

कई कोंस्पिरेनसी थ्योरी है, उसमे एक ये ... कि आमों की टोकरी में बम था। चमचों ने नारे लगाए " जब तक सूरज चांद रहेगा, जिया तेरा नाम रहेगा". लेकिन 2010 के अठारहवें सम्विधान संशोधन द्वारा उनका नाम पाकिस्तान के सम्विधान से हमेशा के लिए हटा दिया गया।

मगर याद से कैसे मिटा सकते हैं किसी को। आज भी जब चार बुद्धिजीवी, चैनल पर बैठकर पाकिस्तान की बरबादी की दास्तां कहते है, जिया को याद करके लानत भेजते हैं। वही मीडिया जो जीतेजी उन्हें "मास्टर टेक्टीशियन" और "रिंगमास्टर" कहा करता था।

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