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'शहादत' और 'देशभक्ति' की आड़ लेकर नागरिकों के प्रति जिम्मेदारी से कब तक बचेंगी सरकारें?


- पुनीत शुक्ला

सभी देशों के नागरिकों को अपनी-अपनी सरकारों से ये सवाल करना चाहिये कि युद्ध की स्थिति क्यों पैदा होने देते हैं? डिप्लोमेटिक लेवल पर क्यों नहीं निबटारा करते? ज़्यादातर सैनिकों की भर्ती गरीब वर्ग से होती है जो रोजी-रोटी के लिये भर्ती होते हैं। (इसमें सैनिक अधिकारी नहीं शामिल)। सैनिक अधिकारी बहुत रॉयल और लक्जरी वाली लाइफ़ जीते हैं। हर देश की सरकारें सेना और देशभक्ति के नाम पर देश के नौजवानों का यूज़ करते हैं। कई बार बिलावजह युद्ध का माहौल बना दिया जाता है और देश मे युद्धोन्माद पैदा किया जाता है।


वीर रस के मूर्ख कवि जगह-जगह कवि सम्मेलनों में अपनी ललकारपूर्ण तुकबंदियों से आग में घी डालते हैं और बकवास करते हैं। श्रोता लोग अपनी ही बरबादी के लिये वाह-वाह और जय-जयकार करते हैं। दोनों तरफ के देशों के इन्हीं आम लोगों, किसानों और मज़दूरों के बेटे जान गँवाते हैं। औरतें विधवा होती हैं और बच्चे अनाथ होते हैं। और, कमाल यह है कि यह सब देशभक्ति के नाम पर किया जाता है। इसके अलावा नेता लोग कई बार सैनिकों की मौत (तथाकथित शहादत) के नाम पर वोट भी माँगते हैं जो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण बात और बेशर्मी की पराकाष्ठा है लेकिन यह सब चलता रहता है।

युद्ध का माहौल होने से हथियारों की बिक्री होती है। हथियार विक्रेता देशों को मुनाफ़ा होता है और इन्हें खरीदने वाले देश अन्य विकास कार्यों, शिक्षा और स्वास्थ्य पर न खर्च करके जीडीपी का बड़ा हिस्सा हथियारों पर खर्च कर देते हैं। यह भी जनता के साथ एक बहुत बड़ा अन्याय होता है। सेना में सैनिकों में जोश भरने के लिये बाकायदा पण्डितों(धर्म गुरुओं)/मौलवियों/ग्रन्थियों/पादरियों आदि की नियुक्ति होती है जो सैनिकों को बेवकूफ़ बनाकर, देशभक्ति और मरने-मिटने के लिये उनके धार्मिक विश्वासों के आधार पर प्रेरित करते हैं। सेना में नियुक्त किये गए ये धर्मगुरु युद्ध और युद्ध के दौरान मृत्यु को महान और पुण्य(सवाब) का काम बताते हैं। ग़ौर से सोचें तो कितना क्रूर और मूर्खतापूर्ण लगता है ये सब। सभी पॉलिटिशियन्स और उनके बच्चों के लिये न्यूनतम 5 वर्ष की सैन्य सेवा अनिवार्य करनी चाहिये। फिर देखिएगा युद्ध की नौबत ही बहुत कम आएगी।

एक बात और, सभी देशों के मध्य जो इंटरनेशनल बॉर्डर्स हैं, उन बॉर्डर्स के दोनों तरफ 50-50 किलोमीटर की दूरी तक मिलिट्री, हथियार, विस्फोटक सामग्री ले जाने में सख्त प्रतिबंध हो। (मनोरंजन के लिये भी नहीं)। ऐसी सामग्री की 50 किलोमीटर पहले स्थित चौकियों पर सख़्त जाँच हो।
बॉर्डर वाले उन (दोनों देशों के) स्थानों पर सबसे पहले उन गाँवों-कस्बों के लोगों का हक़ है। अक्सर देशों के नाम पर सरकारों की दादागीरी के चलते उन बॉर्डर में पड़ने वाले गाँवों के लोग कष्ट झेलते हैं।

यदि हम गौर से देखें तो स्पष्ट हो जाएगा कि अब तक के युद्धों के नाम पर हुए सभी नरसंहार उन देशों की सरकारों की कूटनीतिक असफलता और महत्वाकांक्षाओं के परिणाम हैं और उन देशों की जनता पर ज़बरदस्ती थोपे गए हैं। अब समय आ गया है कि हम पिछले दो- ढाई हजार सालों के युद्ध और उनमें हुई मौतों से सबक लेते हुए ये सब रक्तपात और युद्ध बन्द करें। सेना की भर्ती हो लेकिन वह सेवा कार्यों और प्राकृतिक आपदाओं में रक्षा के लिये हो।

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