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कोरोना काल: अब जाकर हिंदी प्रदेशों की राज्य सरकारों को होश आ रहा है, देर आयद दुरुस्त आयद !

- गिरीश मालवीय

कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों...! आप को शायद याद होगा 5 मई 2020 को दैनिक भास्कर में मित्र पत्रकार Sunil Singh Baghel की एक खबर छपी थी जिसमे कोरोना की जाँच के लिए काम आ सकने वाली एक हेंडी मशीन 'ट्रूनेट' का ज़िक्र किया था यह मुद्दा हमने भी उस दिन सोशल मीडिया पर दमदारी से उठाया था कि यह मशीन कोरोना की जाँच मे इस्तेमाल क्यो नही की जा रही है? 

सोशल मीडिया पर यह पोस्ट वायरल होने के बाद  बड़े पैमाने पर देश भर की राज्य सरकारों का ध्यान इस मशीन पर गया है। उत्तरप्रदेश के योगी आदित्यनाथ को यह मशीन इतनी पसंद आई है कि वह स्टेट का हवाई जहाज भेज कर गोआ जहाँ यह मशीन बनती है वहाँ से बुलवा रहे है और 75 जिलों में अब यह मशीन लगवा रहे हैं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि 15 जून से हर जिले में इन मशीनों से ही टेस्टिंग की जाए, ताकि जांच रिपोर्ट जल्द आ सके

मई के बाद से यह मशीन मध्यप्रदेश के कुछ जिलों में भी इस्तेमाल की जाने लगी है ......दरअसल बैटरी से चलने वाली यह ट्रूनेट मशीन पूर्णतः स्वदेशी मशीनें हैं. इससे जांच करने पर महज एक घंटे में पता चल जाता है कि कोरोना का संक्रमण है या नहीं. लेकिन इतनी बड़ी सुविधा होने के बाद भी माइक्रो पीसीआर तकनीक की इन स्वदेशी मशीनों का उपयोग नहीं हो पा रहा सिर्फ इसलिए क्योंकि ICMR ने निजी लैब संचालकों को महंगी RT पीसीआर मशीन भी खरीदने की शर्त लगा दी है. इसमें दिक्कत ये आ रही है कि अगर किसी के पास पहले से आरटी पीसीआर है तो वो यह छोटी मशीन क्यों खरीदेगा. एक अनुमान के मुताबिक ट्रू-नेट मशीन से रोज 20 से 50 मरीज़ों की जांच की जा सकती है. इस मशीन का इस्तेमाल पहले भी देशभर में टीबी और दूसरे वायरस की जांच के लिए होता रहा है. इनका फायदा ये भी है कि इन मशीनों का इस्तेमाल दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में मोबाइल टेस्टिंग यूनिट की तरह भी किया जा सकता है।

आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु इन माइक्रो PCR मशीनों का पहले से ही इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन पता नहीं हिंदीभाषी प्रदेशों को इस मशीन को अपनाने में क्या समस्या है?

लगभग 4 सालो से यह मशीन भारत के दूरदराज इलाको में अपनी उपयोगिता सिद्ध कर रही हैं ट्रूनेट को तकनीकी सहायता और अन्य संसाधन यूएन की संस्था फाउंडेशन फॉर इनोवेटिव न्यू डायग्नॉस्टिक्स (FIND) द्वारा मिली है। इस तकनीक को गोवा के मोल्बियो डायग्नोस्टिक्स (Molbio Diagnostics) द्वारा विकसित किया गया है। ओर वही इन मशीनों का उत्पादन होता है ट्रूनेट  को मूल रूप से टीबी परीक्षण के लिए विकसित किया गया है, अफ्रीका में इबोला। महामारी में वायरस की जाँच में इसे बड़े पैमाने पर प्रयोग में। लाया गया TRUNET मशीन 1 दिन में 20-60 जांच तक कर सकती है। 40 डिग्री तापमान पर भी काम करने वाली यह TRUNET मशीन एक छोटे से सूटकेस में आ जाती है।  यह मशीन मेक इन इंडिया प्रोग्राम का हिस्सा थी।

अगर शुरू से ही कोरोना की जाँच में इन मशीनों को काम मे लिया जाता तो पता नही कितना श्रम और पैसा इस देश की सरकारों का बच सकता था लेकिन ICMR जैसी संस्थाओं को कमीशन बाजी के चक्कर मे प्राइवेट लैब से महंगी विदेशी RT-PCR मशीनो को बिकवाना ज्यादा जरूरी काम लगा, जबकि ICMR शुरू से ही इस मशीन के बारे मे जानता था कि यह मशीन बहुत काम आ सकती है।

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