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बॉलीवुड में नेपोटिज्म एक कड़वी हकीकत, बड़े-बड़े एक्टर और फिल्म मेकर्स भी इससे अछूते नहीं हैं



- पल्लवी प्रकाश

नेपोटिज्म, फिल्म इंडस्ट्री की एक कड़वी हकीकत है और कभी खुल कर तो कभी दबे-छिपे इसका विरोध भी होता रहा है. ज्यादा समय नहीं हुआ जब सुर-साम्राज्ञी लता मंगेशकर पर इस तरह के आरोप लगे थे कि वह किसी अन्य गायिका को उभरने नहीं देतीं. कहा तो यह भी जाता है कि लता मंगेशकर के शैडो से निकलने के लिए आशा भोंसले को भी कड़ा संघर्ष करना पड़ा था. 


सई परांजपे की फिल्म “साज़” लता और आशा के आपसी सम्बन्धों पर आधारित मानी जाती है. इस फिल्म में दिखाया गया है कि बड़ी बहन मानसी जोकि एक स्थापित गायिका है, अपनी छोटी बहन बंसी की गायन प्रतिभा को दबा कर रखना चाहती है. बंसी जब बड़ी मुश्किल से मानसी के साथ गाने का एक अवसर पाती है तो बड़ी उत्साहित होती है. लेकिन जब रिकॉर्डिंग का वक्त आता है तो उसे पता चलता है कि मानसी ने उसे सिर्फ़ एक बैकग्राउंड सिंगर के तौर पर तब्दील कर दिया है. आहत बंसी निर्णय लेती है कि एक दिन वह सफल गायिका बन कर दिखायेगी और फ़िल्म में ऐसा होता भी है. 


वास्तविक जीवन में भी आशा भोंसले की प्रतिभा को पहचान कर उन्हें स्थापित करने में ओ.पी.नय्यर का बहुत बड़ा रोल रहा. वह उस दौर के शायद इकलौते ऐसे म्यूजिक डायरेक्टर थे जिन्हें लता की नाराजगी का खौफ़ नहीं था. लेकिन इसमें एक रोमैंटिक एंगल भी था क्योंकि वे दोनों एक लम्बे अरसे तक रिलेशनशिप में रहे. यह कह पाना मुश्किल है कि अगर यह एंगल नहीं होता तब भी क्या ओ.पी.नय्यर आशा को स्थापित करने की कोशिश करते? दूसरी तरफ़ आशा भोंसले के साथ अपने सम्बन्धों की वजह से ओ.पी.नय्यर ने गीता दत्त को नजरअंदाज किया. आशा भोंसले के डर से वे उनका फोन नहीं उठाते थे जबकि यह वही गीता दत्त थीं जिनकी सिफ़ारिश से ओ.पी.नय्यर को गुरुदत्त की फिल्म “आरपार” में म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में काम मिला और जो उनकी पहली हिट फिल्म थी. 

आशा से अलग होने के बाद नय्यर ने स्वीकार किया था कि गीता दत्त के साथ उन्होंने वाकई अन्याय किया था. जब गीता को काम की जरूरत थी तो उन्होंने उनकी मदद नहीं की. तो इस फ़िल्मी दुनिया का एक पहलू यह भी है

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