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भारत की अर्थव्यवस्था और कमोडिटी हब अब चीन के रहमो करम पर है !

- मोहम्मद ज़ाहिद

चीन लद्दाख से वापस जाने के लिए तैय्यार नहीं है और सरकार लाल आँख करके सख्ती करने की बजाय घुटना टेक वार्ता पर वार्ता किए जा रही है। पीओके और बलुचिस्तान पर लालकिले से देश को सब्ज़बाग दिखाने वाले नरेन्द्र मोदी पिछले 15 दिन से लद्दाख में अपने देश की ज़मीन वापस नहीं ले पा रहे हैं। उससे मज़ेदार बात यह है कि उनके भक्त यह तर्क दे रहे हैं कि नेहरू के रहते भी चीन भारतीय ज़मीन कब्ज़ा कर चुका है तो मोदी के काल में थोड़ा सा कब्ज़ा कर लिया तो क्या हो गया। सोच लीजिए कि देश में किस तरह का वैचारिक दिवालियापन है।

भाजपा और उनकी सरकारें अपनी हर विफलता का बचाव करने के लिए पिछली सरकारों की वैसी ही विफलता का उदाहरण प्रस्तुत करते रहे हैं। यह अलग बात है कि यह उन्हीं विफलताओं के विरुद्ध जनमत लेकर सरकार में आए थे। इसे ही थेथरई कहते हैं, कहने का अर्थ यह है कि भारत अब खुद की अपेक्षा चीन पर अधिक निर्भर हो गया है , बाकी आप "आत्मनिर्भर" का झुनझुना बजाते रहिए , वक्त वक्त पर मोदी देश को ऐसे झुनझुने थमाते रहे हैं , बरगलाते रहे हैं। 

सच यही है कि भारत की अर्थव्यवस्था और कमोडिटी हब अब चीन के रहमो करम पर है। इसीलिए चीन के सामानों के बायकाट की किसी भी खबर पर सरकार का ऐसी किसी एडवाईजरी के लागू ना होने का स्पष्टीकरण आ जाता है।

पाकिस्तान से ऐसी स्थिति में सब कुछ बंद कर दिया जाता है, खाना पीना, दवाई, क्रिकेट, संगीत, ट्रेन और फ्लाईट सब बंद। पर चीन कितना भी देश की ज़मीन कब्ज़ा करता रहे देश की सरकार उसके सामने घुटने टेक कर अपनी ही ज़मीन वापस माँगती रहेगी।

आप समझ लीजिए कि पाकिस्तान हमारे देश का जितना बड़ा दुश्मन है उससे बहुत बड़ा दुश्मन चीन है पर राजनैतिक कारणों से देश के अंदर पाकिस्तान को लेकर जो बयानबाजी होती है वह केवल अपने समर्थकों की सांप्रदायिक घृणा को बढ़ाने के लिए होती है। दोनों देशों को लेकर मीडिया कवरेज की कहानी आपको फर्क महसूस करा देगी। बाकी, चीन का ऐप आप अनइस्टाल कर लीजिए, चीन का इतना विरोध बहुत है। मुर्दे का बाल उखाड़ लेने से वह हल्का हो जाएगा।

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